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पहले पाकिस्तान को लगाया किनारे, अब मिडल-ईस्ट कॉरिडोर; क्या हैं सऊदी प्रिंस और पीएम मोदी की मुलाकात के मायने

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 नई दिल्ली

सऊदी अरब के प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच की करीबी एक बार फिर देखने को मिल रही है। जी20 सम्मेलन के खत्म होने के बाद भी सऊदी प्रिंस दिल्ली में रुके हैं। सोमवार को राष्ट्रपति भवन में उनका सेरेमोनियल वेलकम होगा और प्रधानमंत्री मोदी के साथ द्विपक्षीय वार्ता होगी। दोनों के बीच पश्चिमी एशिया को महाशक्ति बनाने के लिए मिडल ईस्ट कॉरिडोर को लेकर चर्चा होगी।

मसाला रूट के शिल्पी हैं सऊदी प्रिंस
बता दें कि 2019 के बाद सऊदी प्रिंस का यह दूसरा भारत दौरा है। पीएम मोदी और सऊदी प्रिंस के बीच के समीकरणों को देखकर कहा जा सकता है कि इस वार्ता के बाद कई बड़े करार हो सकते हैं। सऊदी अरब मिडिल ईस्ट की एक बड़ी ताकत है और इस्लामिक देशों पर इसका बड़ा प्रभाव रहता है। वहीं मिडिल ईस्ट कॉरिडोर में भी सऊदी अरब की बड़ी भूमिका है। मोहम्मद बिन सलमान को अगर मिडिल ईस्ट कॉरिडोर का शिल्पी कहा जाए तो इसमें अतिश्योक्ति नहीं होगी। सबसे पहले उन्होंने ही इस रूट को लेकर भारत से संपर्क किया था और इसके बाद यूएईर अमेरिका को भी इस महत्वाकांक्षी योजना से जोड़ा गया। यह रूट वैश्विक व्यापार के लिए बेहद अहम होने वाला है।

इस्लामी कट्टरपंथ के खिलाफ सऊदी
भारत और सऊदी अरब के बीच व्यापारिक संबंध पहले ही मजबूत हैं। वहीं अब इसे और आगे बढ़ाने का प्लान है। सऊदी अरब भारत में निवेश बढ़ाने की योजना बना रहा है। इसके अलावा तेल एक्सपोर्ट के लिए रुपया-रियाल समझौता भी हो सकता है। सऊदी अरब और भारत के बीच साल का व्यापार पांच हजार करोड़ डॉलर से भी ज्यादा का है। भारत की 700 से ज्यादा कंपनियां सऊदी अरब में काम कर रही हैं। सऊदी अरब के साथ मिलकर भारत ने पाकिस्तान को भी किनारे लगाने में काफी हद तक सफलता पाई है। सऊदी अरब अल कायदा और मुस्लिम ब्रदरहुड जैसे कट्टररपंथी इस्लामिक संगठनों का विरोध करता है।

सऊदी अरब और क्राउन प्रिंस के मिलेजुले प्रयास के चलते पाकिस्तान काफी हद तक किनारे लगा गया। हालांकि पाकिस्तान अब भी ओआईसी प्लैटफॉर्म का इस्तेमाल भारत विरोधी अजेंडे के लिए करता रहता है। 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही सऊदी अरब के साथ अप्रोच बदल गया। वहीं क्राउन प्रिंस सलमान ने भी अपने प्रयासों से देश की छवि बदली है। सऊदी अरब आज पश्चिमी देशों के साथ भी अच्छे संबंध रखता है। इसके अलावा अपने देश में उन्होंने महिलाओं के समान अधिकार के लिए भी पहल की है।

दोनों देशों का ड्रीम प्रोजेक्ट है मिडिल ईस्ट कॉरिडोर
भारत और सऊदी अरब दोनों ही देशों के लिए मिडल ईस्ट कॉरिडोर एक ड्रीम प्रोजेक्ट है। सऊई अरब इसमें एक बड़ा निवेसक है। वह हाइफा पोर्ट से जॉर्डन तक के 850 किलोमीटर लंबे रेलमार्ग के लिए फंडिंग करेगा। हालांकि सऊदी अरब इस प्रयास में है कि यूएई भी उसके साथ कदम से कदम मिलाए ताकि भारत में निवेश को डबल किया जा सके। आज भारत और सऊदी अरब के बीच केवल व्यापारिक ही नहीं  बल्कि ऐतिहासिक और राजनीतिक संबंध भी अच्छे हैं। दोनें देश रक्षा सहयोग में भी आगे आए हैं। ऐसे में क्राउन प्रिंस और पीएम मोदी की  मुलाकात काफी अहम है।