नई दिल्ली.
एक तरफ जहां बिहार की नीतीश सरकार राज्य में हुए जाति जनगणना के आंकड़े जारी करने के करीब है, तो दूसरी तरफ विपक्षी गठबंधन INDIA के कई घटक दल आगामी लोकसभा चुनावों को देखते हुए जाति जनगणना की मांग मोदी सरकार से कर रहे हैं। जाति जनगणना का दांव ओबीसी वोट बैंक को साधने के लिए सियासी दल आजमा रहे हैं। ऐसे में मोदी सरकार ने भी उसी ओबीसी वोट बैंक में सेंधमारी के लिए जाति जनगणना की काट तैयार कर ली है, जिसे वह ट्रम्प कार्ड के रूप में इस्तेमाल कर सकती है।
माना जा रहा है कि मोदी सरकार 18 से 22 सितंबर तक बुलाए गए संसद के विशेष सत्र में जाति जनगणना की काट के लिए ओबीसी सब कैटगराइजेशन के लिए बनाई गई जस्टिस रोहिणी कमेटी की रिपोर्ट पेश कर सकती है। सियासी हलकों में इस बात की चर्चा है कि पांच दिनों के विशेष सत्र में मोदी सरकार वन नेशन, वन इलेक्शन, महिला आरक्षण, समान नागरिक संहिता बिल समेत जस्टिस रोहिणी कमेटी की रिपोर्ट भी संसद में पेश कर सकती है। कमेटी ने जुलाई में ही अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी है।
अगर रोहिणी कमेटी की रिपोर्ट संसद में पेश हुई और उस पर चर्चा हुई तो ओबीसी और एससी-एसटी वोट की राजनीति करने वाले दलों की बोलती बंद हो सकती है। बीजेपी की यही कोशिश है कि उन्हें जाति गणना की मांग पर चुप कराया जाय और ओबीसी के अंदर वैसी जातियों के साथ हमदर्दी हासिल की जाए जो उस कैटगरी का लाभ पाने में अभी तक पिछड़े हुए हैं।
जस्टिस रोहिणी आयोग के गठन के उद्देश्य
दरअसल, जस्टिस रोहिणी कमेटी का गठन तीन बड़े उद्देश्यों के लिए किया गया था। पहला- OBC के अंदर अलग-अलग जातियों और समुदायों को आरक्षण का लाभ कितने असमान तरीके से मिल रहा है इसकी जांच करना। दूसरा- ओबीसी के अंदर 27 फीसदी आरक्षण बंटवारे का तरीका, आधार और मानदंड तय करना और तीसरा- ओबीसी की जातियों का उपवर्गों में बांटने के लिए पहचान करना। केंद्र सरकार ने इसी सोच के साथ अक्टूबर 2017 में जस्टिस रोहिणी की अगुवाई में एक आयोग का गठन किया था।
क्या है आरक्षण बंटबारे की धारणा
लंबे समय से यह धारणा रही है कि ओबीसी कैटगरी का 27 फीसदी आरक्षण का लाभ कुछ गिनी-चुनी जातियों के लोग ही उठा लेते हैं, जबकि उसी समुदाय की अपेक्षाकृत ज्यादा पिछड़ी जातियों के लोग उस लाभ से वंचित रह जाते हैं। इसी शिकायत या कमी को दूर करने के लिए कोटा के अंदर कोटा यानी ओबीसी कैटगरी के अंदर अन्य जातियों के बीच क्षैतिज आरक्षण की सीमा तय करने का जिम्मा आयोग को सौंपा गया था।
आयोग की रिपोर्ट में क्या?
जस्टिस रोहिणी कमीशन ने राष्ट्रपति को 1100 पन्नों की रिपोर्ट सौंपी है। इस रिपोर्ट में सिफारिशें दो भागों में बंटी हुई हैं। रिपोर्ट के पहले भाग में ओबीसी आरक्षण के ओबीसी जातियों के बीच क्षैतिज बंटवारे से संबंधित है, जबकि दूसरे भाग में 2633 पिछड़ी जातियों की पहचान जनसंख्या में उनके आनुपातिक प्रतिनिधित्व और आरक्षण का लाभ पाने में उनके आनुपातिक प्रतिनिधित्व से जुड़ा है। इसमें सरकारी योजनाओं खासकर आरक्षण से लाभ पाने वालों का डेटा संकलित है।
रिपोर्ट के राजनीतिक मायने क्या?
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि रोहिणी कमीशन का गठन केंद्र की मोदी सरकार ने समाज के पिछड़े वर्गों खासकर अति पिछड़ों को लुभाने के लिए किया था। ऐसी धारणा है कि ओबीसी के तहत आने वाले यादव समुदाय के लोग बीजेपी के वोट बैंक नहीं हैं लेकिन यूपी-बिहार जैसे बड़े राज्यों में वह ओबीसी आरक्षण की मलाई खाने में सबसे आगे हैं, जबकि नोनिया, कहार, बढ़ई, कुम्हार, धानुक, चौरसिया, राजभर, कश्यप, बिंद केवट, निषाद आदि जातियों के लोग आर7ण का आनुपातिक लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। संयोग से ये जातियां बीजेपी की वोट बैंक हैं।
ओबीसी आबादी कितनी?
आगामी लोकसभा चुनावों में INDIA गठबंधन के घटक दल सभी ओबीसी जातियों को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं और मोदी सरकार और बीजेपी को ओबीसी विरोधी बताने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में केंद्र की मोदी सरकार के लिए जस्टिस रोहिणी आयोग की रिपोर्ट न केवल उनकी जाति जनगणना की मांग के लिए एक बड़ी काट हो सकती है बल्कि ओबीसी वोट बैंक में बड़ी सेंधमारी की कोशिश भी साकार हो सकती है। बता दें कि NSSO के एक सर्वे के मुताबिक, देश में करीब 41 फीसदी ओबीसी आबादी है लेकिन मंडल कमीशन की रिपोर्टके मुताबिक यह आबादी 52 फीसदी है।