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26 अप्रैल को नाम वापसी का आखिरी दिन समाप्त, खत्म हुई कांग्रेस-आप गठबंधन की संभावना

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नई दिल्ली। 26 जनवरी को एनबीटी ने खबर दी थी कि दिल्ली में कांग्रेस और आप के बीच गठबंधन हो सकता है। इसके ठीक तीन महीने बाद यानी 26 अप्रैल को नाम वापसी का आखिरी दिन गुजरने के साथ यह संभावना पूरी तरह खत्म हो गई। लेकिन यह भी इतना ही बड़ा सच है कि दोनों पार्टियां गठबंधन के लिए बातचीत कर रही थीं और आखिरी पल तक इसके लिए प्रयास हुए, पर होते-होते बात रह गई। एनबीटी ने गठबंधन के प्रयास की बात अपने रीडर्स के लिए तब रखी थी जब दोनों पार्टियां खुलकर ऐसी किसी भी कोशिश को खारिज कर रही थीं। आखिर क्यों नहीं हुआ यह अलायंस, क्या थी पर्दे के पीछे की कहानी, यह हमने दोनों पार्टियों से जुड़े लोगों से बात करके पता लगाने की कोशिश की। इतना तो साफ है कि गठबंधन को लेकर कांग्रेस का रुख था कि सिर्फ दिल्ली के लिए बात हो, जबकि आम आदमी पार्टी चाहती थी कि अगर पंजाब और गोवा नहीं तो हरियाणा और चंडीगढ़ तो इसमें शामिल हों। आप का कहना है कि वह दुष्यंत चौटाला की जेजेपी को साथ लेकर आई, जिससे हरियाणा की 10 सीटों और एक चंडीगढ़ पर भी बीजेपी को हराया जा सके, आप यहां खुद के लिए एक सीट पर भी रुकने को तैयार थी। उसकी शिकायत है कि कांग्रेस का रवैया किसी सरकारी दफ्तर जैसा था जहां फाइल एक विभाग से दूसरे में बेहद स्लो रफ्तार में जाती है और फैसला कौन लेगा, यह भी साफ नहीं होता। आप के नेता कहते हैं, 6-3-1 से हम 7-2-1 पर आ गए, दुष्यंत को कम सीटों के लिए मनाया, कांग्रेस के नेताओं ने आखिर में फोन उठाना बंद कर दिया और एक दिन इसे तोड़ दिया। इस बारे में कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि हम हर राज्य के लिए अलग गठबंधन नीति बनाते हैं, हरियाणा में नहीं हो सकता तो दिल्ली में तो किया जा सकता था। कांग्रेस के सूत्रों के मुताबिक दुष्यंत की जो सीट थी, वहां कुलदीप विश्नोई अपने बेटे को लड़ाना चाहते थे, हम सिर्फ जाटों की पार्टी के तौर पर हरियाणा में नहीं दिखना चाहते। आप का कहना है कि दिल्ली में ही लड़ना है तो यहां तो हम कांग्रेस से कहीं ज्यादा मजबूत हैं और अपने दम पर बीजेपी को हराने की ताकत रखते हैं, क्यों कांग्रेस को तीन सीटें देकर बीजेपी की राह आसान करें। अब आगे आप की रणनीति यह है कि आप को भरोसा है कि पिछले चार-पांच सालों में पार्टी ने मजबूत काडर बनाया है, उसके कार्यकतार्ओं का जाल पूरी दिल्ली में बिछा है। इस ताकत के साथ वह अल्पसंख्यकों और दलितों को यह भरोसा दिलाने की कोशिश करेगी कि बीजेपी को दिल्ली में हराने की पोजिशन में वही है। पार्टी ने यह काम ग्राउंड लेवल पर शुरू भी कर दिया है। आप के लिए चुनौती है कि यह चुनाव नैशनल मुद्दों पर हो रहा है, लेकिन प्लस पॉइंट है कि इस चुनाव में अधिकतर राज्यों में रीजनल पार्टियां बीजेपी से लोहा लेती दिख रही हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस की रणनीति यह है कि कांग्रेस के बड़े नेता कहते हैं कि हमने तगड़े कैंडिडेट उतारे हैं। उनका कहना है कि अल्पसंख्यक और दलित वोटर हमारा साथ देगा, क्योंकि यह चुनाव केंद्र की सरकार है, उसे पता है कि आप को कुछ सीट मिल भी गई तो वह मैटर नहीं करेगा जबकि कांग्रेस बड़ा रोल प्ले कर सकती है। यह पूछने पर कि अगर बाकी राज्यों में रीजनल पार्टी अच्छा कर सकती हैं तो यहां आप पर क्यों लोग नहीं भरोसा करेंगे, इस पर कांग्रेस के सूत्र कहते हैं कि बाकी राज्यों में रीजनल पार्टियां बड़ी हैं और उनके नेताओं को जीत मिलने पर भूमिका बड़ी होने के भी आसार हैं। लेकिन कांग्रेस के साथ इस वक्त सबसे बड़ा चैलेंज कार्यकतार्ओं का आप और बीजेपी के मुकाबले कमजोर नेटवर्क है।