नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में स्थायी निवासी का दर्जा प्राप्त करने के इच्छुक लोगों के लिए जम्मू-कश्मीर के संविधान द्वारा निर्धारित आवश्यकताओं पर सवाल उठाया है। संविधान के अनुच्छेद 370 में किए गए बदलावों को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई करने वाली पांच-जजों की संविधान पीठ में शामिल जस्टिस संजीव खन्ना ने राज्य में स्थायी निवासी का दर्जा प्राप्त करने के लिए एक शर्त के रूप में संपत्ति के मालिक होने की आवश्यकता को "अजीब" बताया है। जस्टिस खन्ना ने कहा, "यह कहना भी बहुत अजीब है कि राज्य का स्थायी निवासी का दर्जा पाने के लिए आपके पास राज्य में संपत्ति होनी चाहिए।"
सुनवाई के दौरान जस्टिस खन्ना ने यह बात तब कही, जब वरिष्ठ अधिवक्ता गुरु कृष्णकुमार ने इस बात पर प्रकाश डालना चाहा कि कैसे "हजारों हिंदू और सिख परिवार", जिन्हें पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर से भागना पड़ा था, आज तक अपने पैतृक घरों में वापस नहीं लौट पाए हैं, और उन्हें "तत्कालीन राज्य में समान रूप विस्थापितों को दिए गए अन्य लाभों से भी वंचित कर दिया गया है।"
कृष्णकुमार ने कहा कि यह भेदभाव जम्मू-कश्मीर के संविधान की धारा 6 और जम्मू-कश्मीर पर लागू भारत के संविधान के अनुच्छेद 35ए के कारण है, जो प्रशासन को ऐसे भारतीय नागरिकों के खिलाफ व्यवस्थित रूप से भेदभाव करने का अधिकार देता है। उन्होंने बताया कि धारा 6 के अनुसार, उनके मुवक्किल, जो परिस्थितियों के कारण बलपूर्वक विस्थापित हुए थे, ने स्थायी निवासी होने का अधिकार खो दिया, भले ही वे 15 अगस्त, 1947 को राज्य के विषय थे।
उन्होंने कहा कि जो लोग प्रावधान के अनुसार स्थायी निवासी की परिभाषा में नहीं आते, उन्हें जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन शासक द्वारा जारी 1927 के आदेश में स्थायी निवासी की परिभाषा पर वापस आना होगा। इसके बाद जस्टिस खन्ना ने पूछा कि क्या 1927 का दस्तावेज़ हासिल करना मुश्किल नहीं होगा?
अन्य दलीलों में, गुज्जर बकरवाल समुदाय की ओर से पेश वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ को बताया कि भारत और जम्मू-कश्मीर के संविधान के प्रासंगिक प्रावधानों की तुलना "स्पष्ट रूप से स्थापित" करती है कि "भारत का संघ" जम्मू-कश्मीर के लिए संप्रभु है।” उन्होंने कहा कि जहां तक अनुच्छेद 370 का सवाल है, कानूनी संप्रभुता भारत संघ और जम्मू-कश्मीर के बीच विभाजित है, अंतिम विधायी संप्रभुता का अधिकार केंद्र के पास है। बता दें कि अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का आज आखिरी दिन है।