नई दिल्ली
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अगुवाई वाली केंद्र की भाजपा सरकार अपने निर्णयों से चौंकाती रही है। हाल ही में खबर आई कि 18-22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र आयोजित किया जाने वाला है। इसके संभावित एजेंडे को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं। इस सबके बीच महिला आरक्षण विधेयक को भी पेश किए जाने संभावनाओं पर चर्चा हो रही है। हालांकि आपको बता दें कि सरकार की तरफ से अभी तक पांच दिनों के स्पेशल सत्र के दौरान उठाए जाने वाले मुद्दों के बारे में कोई औपचारिक घोषणा नहीं की गई है।
सूत्रों का कहना कि मोदी सरकार महिला आरक्षण विधेयक पर लंबे समय से विचार कर रही है। यह न केवल सांसदों की संख्या में लैंगिक समानता लाने के लिए एक क्रांतिकारी कदम होगा, बल्कि लोकसभा चुनाव में भाजपा की मदद भी करेगा। आपको बता दें कि महिलाओं को मोदी सरकार के बड़े समर्थकों के रूप में उभरने के लिए देखा जाता है।
आपको यह भी बता दें कि विधायिकाओं में महिलाओं का कोटा लंबे समय से लटका हुआ मुद्दा है। इसे आखिरी बार 2008 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार द्वारा पेश गया था, लेकिन मंडलवादी पार्टियों के कड़े विरोध के कारण इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था। विधेयक को लोकसभा में पेश नहीं किया गया। इसे राज्यसभा में भाजपा और वाम दलों के समर्थन से दो-तिहाई बहुमत के साथ पारित किया गया था।
उस दौर में विरोध करनवे में सबसे आगे रहने वाली पार्टियां अब उतनी मुखर नहीं हो सकती हैं। नीतीश कुमार की पार्टी जद (यू) पहले से ही अपने रुख में बदलाव कर रही है। भले ही उसे इस बात का एहसास है कि भाजपा इस तरह के किसी भी कदम का फायदा उठाएगी, ऐसी संभावना है कि वह इस कदम पर भाजपा के साथ जाएगी। महिला आरक्षण का पुरजोर विरोध करने वाली दो अन्य पार्टियां सपा और आरजेडी के पास विरोध करने के लिए उतनी राजनीतिक ताकत नहीं बची है।
यह विधेयक पहली बार 1996 में एच डी देवेगौड़ा सरकार द्वारा और 1998, 1999, 2002 और 2003 में कई मौकों पर अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा पेश किया गया था। 1996 में जेडीयू के दिग्गज नेता शरद यादव विपक्ष के चेहरे के रूप में उभरे थे। 'पर कटी नारी' वाले तंज के साथ उन्होंने बिल में 'कोटा के भीतर कोटा' की मांग का समर्थन किया। इसके अलावा कांग्रेस के लिए इस बिल का विरोध करना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि पार्टी लंबे समय से महिलाओं के लिए 33% कोटा तय करने की वकालत कर रही है।
बीजेडी, वाईएसआरसीपी जैसे कुछ क्षेत्रीय दलों का समर्थन कई मुद्दों पर भाजपा को मिलता रहा है। राज्यसभा में इसकी सख्त जरूरत पड़ेगी। लोकसभा में भाजपा के पास पूर्ण बहुमत है।