अक्सर हम स्क्रीन के सामने सांस लेना भूल जाते हैं। खासतौर पर ई-मेल चेक करते वक्त। क्या आपके साथ भी ऐसा होता है? लेखक जेम्स नेस्टर ने अपनी किताब ‘ब्रीथ: द न्यू साइंस आफ ए लॉस्ट आर्ट’ में लिखा है कि गैजेट्स के ज्यादा इस्तेमाल से हमारा स्क्रीन टाइम बढ़ा है।
आधुनिक जीवनशैली में मोबाइल फोन, लैपटॉप, कंप्यूटर्स जैसे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का महत्व जहां लगातार बढ़ता जा रहा है और इससे जीवन में लोगों को सहूलियतें मिल रही हैं तो वहीं दूसरी ओर इसके कुछ नुकसान भी सामने आ रहे हैं। इन गैजेट्स के साइड इफेक्ट्स सबसे ज्यादा हमारे शरीर पर ही पड़ रहे हैं। अक्सर हम स्क्रीन के सामने सांस लेना भूल जाते हैं। खासतौर पर ई-मेल चेक करते वक्त। क्या आपके साथ भी ऐसा होता है?
लेखक जेम्स नेस्टर ने अपनी किताब ‘ब्रीथ: द न्यू साइंस आफ ए लॉस्ट आर्ट’ में लिखा है कि गैजेट्स के ज्यादा इस्तेमाल से हमारा स्क्रीन टाइम बढ़ा है। स्क्रीन टाइम के बढ़ने से हमारे सांस लेने का पैटर्न भी बदला है। चैपल हिल में उत्तरी कैरोलिना विवि में मनोचिकित्सा के प्रोफेसर स्टीफन पोर्गेस ने कहा, जब हम किसी भी प्रकार की चीज का सामना करते हैं, तो हमारा नर्वस सिस्टम यह समझने के लिए संकेतों की तलाश करता है कि यह खतरा है या नहीं। ये एक समस्या बन जाते हैं।
ई-मेल चेक करते समय हार्ट-बीट की स्टडी हुई
दिन भर के काम के बाद उखड़ी हुई सांसें आपको थका हुआ महसूस करा सकती हैं, भले ही ये काम विशेष रूप से तनावपूर्ण न हो। माइक्रोसॉफ्ट की पूर्व कार्यकारी लिंडा स्टोन ने एक प्रयोग किया। उन्होंने अपने घर पर 200 लोगों को आमंत्रित किया था। उन्होंने उनके ई-मेल की जांच करते समय उनकी दिल की धड़कन और सांस की निगरानी की, तो पता चला कि लगभग 80% लोगों ने समय-समय पर अपनी सांस रोक ली या उनके सांस लेने का पैटर्न बदल गया था। उन्होंने इसे ई-मेल एपनिया नाम दिया। बाद में जब उन्होंने देखा कि सिर्फ मेल चेक करते वक्त ही नहीं बल्कि स्क्रीन पर कुछ भी करते वक्त हमारी सांसों का पैटर्न बदलता है तो इसे स्क्रीन एपनिया नाम दिया है।