दमोह
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने दमोह के गंगा जमना स्कूल के हिजाब मामले में महिला प्राचार्या और तीन अन्य आरोपियों को सशर्त जमानत दे दी है. हाईकोर्ट के जस्टिस डीके पालीवाल के पीठ ने कहा है कि हिूंद और जैन समुदाय की बच्चियों को हिजाब पहनने के लिए मजबूर न किया जाए. धार्मिक अनिवार्यता तिलक, कलावा और जनेऊ पहनने से किसी को रोका नहीं जाएगा.अदालत ने कहा है कि शर्तों के उल्लंघन पर जमानत समाप्त हो जाएगी.
कौन कौन हैं इस मामले के आरोपी
गंगा जमना स्कूल की प्रचार्या असफा शेख, शिक्षक अनस अथर और चपरासी रूस्तम अली ने जमानत याचिका पेश की थी.आरोपियों ने कहा कि उन्हें धारा-295 ए, 506, 120 बी, जुबेनाइल जस्टिस एक्ट और धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम में 11 जून को गिरफ्तार किया गया था. इसके बाद से ही वो न्यायिक अभिरक्षा में हैं. पुलिस ने प्रकरण में चालान भी न्यायालय के समक्ष पेश कर दिया है. उन पर आरोप है कि उन्होंने नर्सरी से कक्षा 12 तक की छात्राओं को सलवार सूट और स्कार्फ पहनने के लिए मजबूर किया. स्कूल में मुस्लिम धर्म की प्रार्थना और उर्दू भाषा सभी के लिए अनिर्वाय थी. छात्रों को तिलक लगाना तथा कलावा और जनेउ पहनना प्रतिबंधित था.
याचिकाकर्ताओं की दलील
याचियों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मनीष दत्त ने अदालत को बताया कि ड्रेस कोड का निर्धारण स्कूल कमेटी द्वारा किया गया था. कर्मचारी होने के कारण उसका पालन करना याचिकाकर्ताओं ने कराया. स्कूल एक अल्पसंख्यक संस्था का है. परंतु धर्मान्तरण की कोई शिकायत सामने नहीं आई है. तीनों याचिकाकर्ता ढाई महीने से जेल में बंद हैं. संबंधित न्यायालय के समक्ष पुलिस ने प्रकरण में चालान भी पेश कर दिया है.
इन दलीलों को सुनने के बाद अदालत ने पांच शर्ते निर्धारत करते हुए आरोपियों की जमानत मंजूर कर ली. अदालत ने कहा है कि चालान पेश हो गया है और ट्रायल में समय लगेगा. मुख्य रूप से स्कूल प्रबंधन पर आरोप है कि छात्राओं को हिजाब पहनने मजबूर किया गया. याचिकाकर्ता भविष्य में ये कृत्य न करें, स्कूल परिसर में हिजाब पहनने छात्राओं को मजबूर नहीं किया जाए. माध्यमिक शिक्षा मंडल द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम अनुसार शिक्षा प्रदान की जाए, छात्रों को धार्मिक शिक्षा नहीं, बल्कि आधुनिक शिक्षा दी जाए. शर्तों का उल्लंघन करने पर जमानत समाप्त हो जाएगी.
क्या है पूरा विवाद
दमोह के गंगा जमुना हायर सेकेंडरी स्कूल के 11 सदस्यों के खिलाफ इस साल 31 मई को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और जुबेनाइल जस्टिस एक्ट की धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी. यह प्रकरण तब सामने आया जब स्कूल प्रशासन ने कक्षा 10 और 12 की राज्य बोर्ड परीक्षाओं में टॉप करने वाले छात्रों का एक पोस्टर स्कूल परिसर में लगाया. इस पोस्टर में सभी छात्राएं सिर पर स्कार्फ पहने नजर आ रही थीं, हालांकि उनमें से पांच मुस्लिम नहीं थीं. इस संबंध में छात्रों के माता-पिता ने शिकायत दर्ज कराई थी. इसके बाद पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार किया था.