नई दिल्ली
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ चुनाव के ऐलान से पहले ही उम्मीदवारों के नाम घोषित कर चुकी भाजपा अब लोकसभा चुनाव में भी इसी रणनीति पर काम कर रही है। पार्टी आम चुनाव के ऐलान से कई महीने पहले ही तमाम सीटों पर उम्मीदवार तय कर सकती है। फिलहाल उसका फोकस उन 160 सीटों पर है, जिनमें पार्टी खुद को कमजोर मानती है। इन सीटों पर बीते करीब एक साल में भाजपा ने जमकर मेहनत की है और केंद्रीय मंत्रियों तक को उतारा है। इन कमजोर सीटों में से ज्यादातर दक्षिण और पूर्वी भारत में ही हैं। भाजपा को लगता है कि इन सीटों पर पहले से उम्मीदवार घोषित करके तैयारी की जाए तो सफलता मिल सकती है।
भाजपा ने इन 160 सीटों को 40 क्लस्टर्स में बांटा है। महीनों से वह इन सीटों पर खुद को मजबूत कर रही है। संगठन के सीनियर नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों को भी इन सीटों पर उतारा गया था। उत्तर प्रदेश की बात करें तो जिन सीटों पर भाजपा पहले से तैयारी कर रही है और कैंडिडेट उतारने की योजना बना रही है, उनमें सोनिया गांधी की सीट रायबरेली, डिंपल यादव की सीट मैनपुरी शामिल हैं। इन सभी सीटों पर जल्दी ही अमित शाह और जेपी नड्डा रैलियां करने वाले हैं। भाजपा इस बार चुनाव में कठिन सीटों पर खास फोकस कर रही है ताकि समय से पहले ही तैयारी की जा सके। उम्मीदवारों के नामों का ऐलान यदि पहले हो जाएगा तो उन्हें तैयारी का मौका मिल सकेगा।
विधानसभा चुनाव के बाद ही घोषित होने लगेंगे उम्मीदवार
इसके अलावा उम्मीदवारों के नाम तय होने से कार्यकर्ताओं को मोबिलाइज करना भी आसान होगा। मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना समेत 4 राज्यों के विधानसभा चुनाव समाप्त होते ही भाजपा उम्मीदवारों के ऐलान शुरू कर देगी। खासतौर पर भाजपा ने 160 सीटों में उनको शामिल किया है, जिन पर उसे 2019 में हार मिली थी। हालांकि कुछ ऐसी सीटें भी शामिल हैं, जिन पर उसने पिछले चुनाव में भले जीत हासिल कर ली थी। लेकिन वह सामाजिक और राजनीतिक समीकरणों के चलते उन्हें अपने लिए चैलेंज मानती है।
रोहतक और बागपत जैसी जीती सीटों पर भी है चैलेंज
रोहतक और बागपत जैसी सीटों पर भाजपा ने पिछले चुनाव में जीत हासिल कर ली थी, लेकिन इस बार इनको भी वह अपने लिए चैलेंज के तौर पर देख रही है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक 160 सीटों पर संगठन को मजबूत करने और महीनों पहले से कैंपेन शुरू करने का प्लान है। 2019 के चुनाव से पहले भी पार्टी ने ऐसी ही कोशिश की थी और उसे सफलता भी मिली थी। भाजपा ने अकेले 303 सीटें जीत ली थीं, जबकि 2014 में यह आंकड़ा 282 का ही था।