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पटेल ने रोका था, नेहरू तो लाहौर भी जा रहे थे; 370 पर SC में बोली सरकार

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नईदिल्ली

जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। इस दौरान गुरुवार को केंद्र सरकार ने 1947 के उस दौर के घटनाक्रम का सिलसिलेवार ब्योरा दिया, जब जम्मू-कश्मीर का भारत में आधिकारिक तौर पर विलय हुआ था। केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरदार पटेल जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दिए जाने के पूरी तरह खिलाफ थे। यही नहीं आर्टिकल 370 लागू करने को उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की देन बताया। मेहता ने अदालत में कहा कि जम्मू-कश्मीर में नेहरू के दूत के तौर पर काम कर रहे गोपालस्वामी आयंगर ने उनके निर्देश पर ही आर्टिकल 370 को जोड़ने का फैसला लिया था।

उन्होंने जम्मू-कश्मीर के विलय की पूरी क्रोनोलॉजी बताते हुए कहा कि अक्टूबर 1947 में विलय पर फैसला होने से पहले ही पाकिस्तान ने हमला कर दिया था। ऐसी स्थिति को पटेल पहले ही भांप चुके थे और उन्होंने 3 जुलाई, 1947 को डोगरा महाराजा हरि सिंह को लिखा था कि उन्हें बिना कोई देर किए भारत का हिस्सा बन जाना चाहिए। इसकी वजह यह है कि कश्मीर भौगोलिक रूप से और परंपरागत तौर पर भी भारत से जुड़ाव रखता है। मेहता ने कहा कि पाकिस्तान के हमले के बाद महाराजा हरि सिंह ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए थे और फिर जब भारतीय सेना ने कश्मीर का रुख किया तो पाकिस्तान पीछे हटा।

कश्मीर के महाराजा ने जब विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए तो जिन्ना ने जवाहरलाल नेहरू को कश्मीर मुद्दे पर बात करने के लिए लाहौर बुलाया था। कई किताबों का हवाला देते हुए सॉलिसिटर जनरल ने कहा, 'माउंटबेटन जिन्ना का आमंत्रण स्वीकार करना चाहते थे। उनकी सलाह पर ही नेहरू भी राजी थे। हालांकि पटेल इसके खिलाफ थे। उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान हमलावर है और हम उसकी ही शर्त पर बात नहीं कर सकते। सहमति न बन पाने पर यह मसला महात्मा गांधी के पास ले जाया गया। उन्होंने नेहरू, पटेल और वीपी मेनन से बात की। इसी में एक कूटनीतिक हल निकाला गया कि नेहरू नहीं जाएंगे बल्कि माउंटबेटन अकेले लाहौर जा सकते हैं।'

यही नहीं केंद्र सरकार की ओर से अदालत में यह भी तर्क दिया गया कि 1947 से पहले 62 रियासतों का अलग संविधान था। ऐसे में यह कोई आधार नहीं हो सकता कि जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य माना जाए। आर्टिकल 370 पर फिलहाल सुनवाई जारी है और दोनों पक्षों की ओर से कोर्ट में ऐतिहासिक तथ्यों के साथ तर्क पेश किए जा रहे हैं।