नई दिल्ली
Chandryaan 3 चांद की सतह पर सुरक्षित उतर चुका है। इसके साथ ही भारत अब अमेरिका, चीन और रूस वाले एलीट क्लब में शामिल हो गया है। खास बात है कि जब सभी की नजरें सॉफ्ट लैंडिंग पर थीं और इसे सबसे मुश्किल चरण बताया जा रहा था, तब ISRO यानी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के प्रमुख एस सोमनाथ के मन में कुछ और ही चल रहा था। उन्होंने इस अभियान के सबसे अहम चार हिस्सों के बारे में बताया।
रिपोर्ट के अनुसार, सोमनाथ ने कहा, 'मिशन का सबसे मुश्किल हिस्सा लॉन्चिंग रही…। आपको यह नहीं भूलना चाहिए कि GSLV मार्क 3 ने अंतरिक्ष यान को सही ऑर्बिट में भेजने का काम किया था।' दरअसल, GSLV मार्क 3 उस रॉकेट का नाम था, जिसने विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर वाले चंद्रयान 3 मॉड्यूल को लॉन्च किया था।
चंद्रयान 3 लांच के 13 मिनट बाद रॉकेट से अलग हो गया था और पृथ्वी का 6 बार चक्कर काटा, जिसके बाद वह 36 हजार 500 किमी की ऊंचाई पर पहुंचा। इसके बाद इसरो ने पहली बार ऑर्बिट रेजिंग की प्रक्रिया 15 जुलाई को पूरी की और चंद्रयान 3 मॉड्यूल 41 हजार 672 किमी की दूरी पर पहुंच गया था।
उन्होंने कहा, 'दूसरी सबसे अहम प्रक्रिया को लैंडिंग एंड कैप्चरिंग ऑफ मून कहा जाता है। अगर आप इस मौके को गंवा देते हैं, तो (चांद की सतह पर उतरने की संभावनाएं) खत्म हो जाती हैं। आप इसे दोबारा नहीं कर सकते हैं और मिशन खत्म हो जाता।' दरअसल, कैप्चर द मून का मतलब उस प्रक्रिया से है, जहां चंद्रयान 3 डिबूस्ट की प्रक्रिया और उतरने की तैयारी के दौरान लैंडिंग की जगह की पहचान करता है।
ISRO प्रमुख बताते हैं, 'तीसरा सबसे अहम हिस्सा लैंडर और ऑर्बिटर का अलग होना है, जो सही समय पर हुआ। आपको यह याद रखना चाहिए कि ऐसा अंतरिक्ष में कई दिन गुजारने के बाद हुआ। पूरी प्रक्रिया बगैर किसी दिक्कत के पूरी की जानी थी और ऐसा ही हुआ।' प्रज्ञान रोवर को साथ लेकर उड़ रहा विक्रम लैंडर प्रोपल्शन मॉड्यूल से 17 अगस्त को अलग हो गया था।
उन्होंने चंद्रयान 3 के चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग को लेकर कहा, 'आखिरी जरूरी हिस्से को आपने हमारे साथ ही देखा।'