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15 साल में तीसरा चंद्रयान मिशन, लगता है वास्तव में ISRO को बुलाता है चंद्रमा

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नई दिल्ली
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) ने 15 साल में तीन चंद्र अभियान भेजे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि मानो चंद्रमा इसरो को अपने यहां बार-बार आमंत्रित करता है। और ऐसा क्यों न हो? वैज्ञानिकों को 2009 में चंद्रयान-1 से मिले डेटा का पहली बार इस्तेमाल कर चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों में अंधकार वाले और सबसे अधिक ठंडे हिस्सों में बर्फ के अंश का पता चला था। चंद्रयान-1 भारत का पहला चंद्र अभियान था। इसका प्रक्षेपण 22 अक्टूबर, 2008 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से हुआ था।

यान में भारत, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, स्वीडन और बुल्गारिया निर्मित 11 वैज्ञानिक उपकरण थे जिसने चंद्रमा के रासायनिक, खनिज विज्ञान और फोटो-भूगर्भीय मानचित्रण के लिए उसकी सतह से 100 किलोमीटर की ऊंचाई पर चारों ओर परिक्रमा की थी। अभियान के सभी अहम पहलुओं के सफलतापूर्वक पूरा होने के बाद मई 2009 में कक्षा का दायरा बढ़ाकर 200 किलोमीटर कर दिया गया। उपग्रह ने चंद्रमा के आस पास 3,400 से अधिक कक्षाएं बनाईं। कक्षीय अभियान की अवधि दो साल थी और 29 अगस्त 2009 को यान के साथ संचार संपर्क टूट जाने के बाद समय से पहले ही इसे रद्द कर दिया गया था।

इसरो के तत्कालीन अध्यक्ष जी. माधवन नायर ने कहा, ''चंद्रयान-1 ने अपने 95 प्रतिशत उद्देश्य हासिल किए।'' एक दशक बाद चंद्रयान-2 को 22 जुलाई, 2019 को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया, जिसमें एक ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर शामिल था। देश के दूसरे चंद्र अभियान का उद्देश्य ऑर्बिटर पर पेलोड द्वारा वैज्ञानिक अध्ययन और चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग तथा घूर्णन की प्रौद्योगिकी का प्रदर्शन करना था। प्रक्षेपण, महत्वपूर्ण कक्षीय अभ्यास, लैंडर को अलग करना, 'डी-बूस्ट' और 'रफ ब्रेकिंग' चरण सहित प्रौद्योगिकी प्रदर्शन के अधिकांश घटकों को सफलतापूर्वक पूरा किया गया। चांद पर पहुंचने के अंतिम चरण में रोवर के साथ लैंडर दुर्घटनाग्रस्त हो गया जिससे चांद की सतह पर उतरने का उसका मकसद सफल नहीं हो पाया।

नायर ने सोमवार को पीटीआई से कहा, ''हम बेहद करीब थे लेकिन आखिरी दो किलोमीटर में (चंद्रमा की सतह के ऊपर) इसमें (चंद्रयान-2 अभियान के दौरान चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग में) सफल नहीं हो पाए।'' हालांकि लैंडर और रोवर से अलग हो चुके ऑर्बिटर के सभी आठ वैज्ञानिक उपकरण डिजाइन के मुताबिक कार्य कर रहे हैं और बहुमूल्य वैज्ञानिक आंकड़े उपलब्ध करा रहे हैं।

इसरो के अनुसार, सटीक प्रक्षेपण और कक्षीय अभ्यास के कारण ऑर्बिटर का अभियान जीवन सात वर्ष तक बढ़ गया। इसरो ने सोमवार को कहा कि चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर और चंद्रयान-3 के लूनर मॉड्यूल के बीच दो तरफा सफल संचार कायम हुआ है। वर्ष 2009 में चंद्रमा पर पानी की खोज एक महत्वपूर्ण घटना थी जिसके बाद वैज्ञानिकों ने भारत के चंद्रयान-1 के साथ गए एक उपकरण के डाटा का उपयोग करके चंद्रमा की मिट्टी की सबसे ऊपरी परत में पानी का मौजूदगी का पहला नक्शा बनाया। इसरो के वैज्ञानिकों ने कहा कि यह भविष्य में चंद्रमा की खोज के लिए काफी उपयोगी साबित होगा।

'साइंस एडवांसेज' पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन 2009 में चंद्रमा की मिट्टी में पानी और एक संबंधित आयन – हाइड्रॉक्सिल की प्रारंभिक खोज पर आधारित है। हाइड्रॉक्सिल में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के एक-एक परमाणु होते हैं। अमेरिका में ब्राउन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने वैश्विक स्तर पर कितना पानी मौजूद है, इसकी मात्रा निर्धारित करने के लिए नासा के मून मिनरलॉजी मैपर से लिए गए डाटा के एक नए कैलिब्रेशन (किसी उपकरण पर मापन-इकाइयों के निर्धारण की क्रिया) का उपयोग किया। नासा का मून मिनरलॉजी मैपर 2008 में चंद्रयान-1 के साथ भेजा गया था। भारत के चंद्रयान-1 मिशन द्वारा एकत्र किए गए डाटा का उपयोग करते हुए नासा ने चंद्रमा की सतह के नीचे छिपे जादुई पानी के भंडार का पता लगाया है।