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अपने से श्रेष्ठ या समकक्ष व्यक्ति से ही सहयोग मांगें : प्रवीण ऋषि

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रायपुर

उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने कहा कि जो अँधेरे में रौशनी कर दे उसे नाथ कहते हैं, और जो रोशनी को अंधकार में बदल दे उसे अनाथ कहते हैं। वैसे ही परिवार समस्या को सुलझाता है, वहीं कुपरिवार समस्या को बढ़ाता है। कुपरिवार से कोई परिवार न रहे यह अच्छा है। परिवार में समस्या, तनाव रहता है। इसमें समाधान देने वाले भी हो सकते हैं और समस्या देने वाले भी। और समस्या के समय, संकट की घड़ी में उनसे सहयोग लें जिनकी कुशल बुद्धि है, जिनमे संयम है। उनसे सहयोग लेना चाहिए जो आपसे श्रेष्ठ हों, या आपके समकक्ष हों। नीच व्यक्ति से कभी सहयोग नहीं मांगना चाहिए। चलना है तो श्रेष्ठ के साथ चलो, कमजोर के साथ कभी मत चलो। उपाध्याय प्रवीण ऋषि मंगलवार को लालगंगा पटवा भवन में धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी।

प्रवीण ऋषि ने महावीर गाथा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि जो तुम्हारी कृपा न समझे, तुम्हारी दया को तुम्हारी कमजोरी समझे उससे दूर रहो। दुर्जन को पछतावा नहीं होता है। सज्जन व्यक्ति पश्चाताप करता है। विश्वभूति के साथ ऐसा ही हुआ था। लकिन बोए बीज कभी व्यर्थ नहीं जाते हैं, ये कल्पवृक्ष बनकर ये तुम्हारी जिंदगी में पनपेंगे ही पनपेंगे। ऐसे ही विश्वभूति के जीवन में संभूति विजय आए। जैसे दुश्मनों के लिए रास्ते बनने नहीं पड़ते हैं, वैसे ही गुरु, भगवान और दोस्तों के आने के रास्ते भी बनाने नहीं पड़ते हैं, वो चले आते हैं। जैसे भगवान राम को खोजते खोजते हनुमान-सुग्रीव आ गए थे, वैसे ही संभूती विजय को खोजने के लिए विश्वभूति नहीं गया था। संभूति और विश्वभूति को लगा कि जनम जनम की प्रीत आज जाग उठी। विश्वभूति ने सोचा कि मेरे जीवन में सब थे, गुरु और भगवान नहीं थे। संभूति विजय मिले तो लगा सबकुछ मिल गया।

विश्वभूति अब मुनि बन गया। इसकी सूचना जब नगर में पहुंची तो मानो भूकंप आ गया। वहीं इस खबर को सुनकर सेना भी बिखर गई। पूरी सेना को लगा कि विश्वभूति नहीं तो हम भी नहीं। सेना सोचने लगी कि हम विशाख नंदी के साथ कैसे रहेंगे। ऐसे कायर, लाचार  के नेतृत्व में हम कैसे रहेंगे? सेना की बगावत की खबर राजा तक पहुंची। मंत्री ने राजा से कहा कि हमें विश्वभूति को वापस लाना पड़ेगा। रानी परिवार में कोहराम मचा हुआ है, कह रही हैं कि यह सब हमारी गलती है। एक छोटी सी गलती थी, लेकिन इसकी सजा बहुत बड़ी मिली। माँ के आंसू थम नहीं रहे हैं, पिता तो मानों लकड़ी की मूर्ति बन गए हैं। खुद को धिक्कार रहे हैं। प्रवीण ऋषि ने कहा कि एक व्यक्ति की गलती कितनों को मजबूर बना देती है। छोटे व्यक्ति की गलती की बड़ी सजा बड़ों को भुगतनी पड़ती है। मंत्री ने जोर देकर राजा से कहा कि एक बार तो चलिए, राजा ने कहा किस मुंह से जाऊं? मैं तो उसके सामने अब खड़ा भी नहीं हो सकता। विशाख नंदी के पास खबर पहुंची तो उसने कहा उद्यान नहीं मिला तो दीक्षा ले ली? और पिताजी उस भगोड़े को वापस लाने जा रहे हैं। प्रवीण ऋषि ने कहा कि जिसकी जितनी ऊंचाई होती हैं वैसे ही उसकी सोच होती है। किसी की योग्यता का मूल्यांकन एक योग्य व्यक्ति ही कर सकता है।