नईदिल्ली
भारत, स्पेस में इतिहास रचने से कुछ ही कदम दूर है. चंद्रयान-3 का लैंडर मॉड्यूल 23 अगस्त शाम 05:30 से 06:30 बजे चांद के उस हिस्से को छूने वाला है, जिसे अब तक किसी ने नहीं देखा था. 23 अगस्त को लैंडिंग के साथ ही लैंडर विक्रम अपना काम शुरू कर देगा. चांद पर एक दिन पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर होता है. यही वजह है कि चंद्रयान 3 मिशन 14 दिनों तक चांद की सतह पर रिसर्च करेगा. आइए जानते हैं उस जगह के बारे में 7 बातें.
1. चंद्रयान-3 लैंडर की प्राइम साइट
इसरो की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार, चांद पर लैंडर मॉड्यूल की प्राइम साइट 4 किमी x 2.4 किमी 69.367621 एस, 32.348126 ई है.
2. दक्षिणी ध्रुव पर नहीं उतरेगा लैंडर
भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के नजदीक स्थित मैंजिनस-यू (Manzinus-U) क्रेटर के पास चंद्रयान-3 को उतार सकता है. इसरो प्रमुख डॉ. एस सोमनाथ पहले ही बोल चुके हैं कि हम चंद्रयान-3 को दक्षिणी ध्रुव के पास उतार रहे हैं. न कि दक्षिणी ध्रुव पर.
3. ढलान पर उतर सकता है लैंडर
विक्रम लैंडर 12 डिग्री झुकाव वाली ढलान पर उतर सकता है. विक्रम लैंडर जिस समय चांद की सतह पर उतरेगा, उस समय उसकी गति 2 मीटर प्रति सेकेंड के आसपास होगी. लेकिन हॉरीजोंटल गति 0.5 मीटर प्रति सेकेंड होगी.
4. -200°C मिलेगा तापमान
दक्षिणी ध्रुव के पास का तापमान अधिकतम 100 डिग्री सेल्सियस से ऊपर और न्यूनतम माइनस 200 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो सकता है. वहां पर्याप्त रोशनी रहती है. चांद का ये हिस्सा पृथ्वी के दक्षिणी द्रुव अंटार्कटिका की तरह ठंडा माना जा रहा है.
5. पानी की ऐसे होगी जांच
चंद्रयान-3 जिस जगह पर लैंड करेगा वहां मौजूद पानी ठोस रूप में यानी बर्फ की शक्ल में मिलेगा. उसकी जांच की जाएगी और पता लगाया जाएगा कि वह कितने काम का है.
6. कहीं गड्ढे, कहीं मैदान…
Chandrayaan-3 के विक्रम लैंडर में लगे लैंडर हजार्ड डिटेक्शन एंड अवॉयडेंस कैमरा (Lander Hazard Detection and Avoidance Camera – LHDAC) ने हाल ही में चार तस्वीरें भेजी हैं. जिनमें कहीं बड़े गड्ढे तो कहीं मैदानी एरिया नजर आ रहा है. वहां ज्यादातर जमीन उबड़-खाबड़ नजर आ रही है. माना जाता है कि इस साइट पर चांद की सबसे पुरानी और मोटी परत है जो गड्ढों (क्रेटर्स) से भरी है.
7. पानी या बर्फ के अलावा…
नासा की मानें तो इस साइट पर पानी या बर्फ के अलावा कई दूसरे प्राकृतिक संसाधन भी मिल सकते हैं. जांच के बाद पता लगाया जाएगा कि वहां पाए जाने वाले अन्य संसाधन इंसानों के लिए कितने फायदेमंद या नुकसान कर सकते हैं.