नई दिल्ली
बात 1985 की है। राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। तब प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) को राजस्थान के एक आदिवासी ग्रामीण सोमाराम पारगी का एक टेलीग्राम मिला था। राजस्थान के डूंगरपुर जिले के धनोला के ग्रामीणों ने प्रधान मंत्री से तब आदिवासियों की खराब दुर्दशा को देखने के लिए आदिवासी क्षेत्र का दौरा करने का अनुरोध किया था। उस वक्त पीएमओ को ऐसे कई टेलीग्राम मिल रहे थे लेकिन पारगी के टेलीग्राम को PMO ने ज्यादा तवज्जो दी।
तत्कालीन प्रधान मंत्री ने पारगी के टेलीग्राम पर वहां जाने का निमंत्रण स्वीकार कर लिया और धनोला जाने का फैसला किया। उस वक्त हरिदेव जोशी राजस्थान के मुख्यमंत्री थे, जो खुद बांसवाड़ा के आदिवासी इलाके से आते थे। आदिवासी इलाकों में उस समय एक भी पक्का घर नहीं था, केवल मिट्टी, लकड़ी और सूखे पत्तों से बनी झोपड़ियाँ थीं। उनकी स्थिति बहुत ही दयनीय थी।
2KM पैदल चले थे PM राजीव गांधी
8 अगस्त, 1985 को प्रधानमंत्री राजीव गांधी अपनी पत्नी सोनिया गांधी के साथ उस आदिवासी गांव में पहुंच गए। गांव तक पहुंचने के लिए पीएम राजीव गांधी को 2 किलोमीटर तक मिट्टी से सने रास्ते पर पैदल चलना पड़ा था। उनके निर्देश पर कोई भी पुलिस अधिकारी उनके साथ गांव नहीं गया था। दरअसल, प्रधानमंत्री गाँव में आदिवासी ग्रामीणों की समस्याओं पर एक खुली चर्चा चाहते थे। इससे पहले वह सोनिया गांधी के साथ कुरा मीना और अन्य आदिवासी ग्रामीणों की झोपड़ियों में गए। उस वक्त तत्कालीन सीएम हरिदेव जोशी ने दुभाषिए का काम किया था।
सोनिया ने चलाई थी चक्की
नेशनल हेराल्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, तब सोनिया गांधी ने आदिवासी महिलाओं के साथ चक्की पर भी हाथ आजमाया था, जब वे परंपरागत पत्थर की बनी चक्की पर अनाज पीस रही थीं। सोनिया ने तब पूछा था कि आप लोग चक्की क्यों चला रही हैं, जबकि आटा मिल उपलब्ध हैं। तब आदिवासी महिलाओं ने कहा था कि वह जो पीस रही हैं, वह गेहूं नहीं है बल्कि कगनी कुरी (एक तरह का अनाज, जिससे चपाती बनती) है। राजीव और सोनिया ने तब उससे बनी मोटी चपाती भी खाई थी। कहा जाता है कि इसी दौरे पर प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी को धनौला गांव के आदिवासियों तक सार्वजनिक वितरण प्रणाली का लाभ पहुंचाने का आदेश दिया था। राजस्थान से लौटते ही राजीव गांधी ने न केवल राजस्थान के आदिवासी ग्रामीणों के लिए बल्कि देश के सभी आदिवासियों के लिए कई पैकेजों की घोषणा की थी। वर्तमान जनजातीय कल्याण की कई योजनाएं उनकी ही सरकार द्वारा शुरू की गई हैं।
आदिवासी दंपति को दिए 200 रुपये
पूर्व सांसद और वरिष्ठ पत्रकार संतोष भारतीय ने अपनी किताब 'वीपी सिंह, चंद्रशेखर, सोनिया गांधी और मैं' में उस घटना का जिक्र करते हुए लिखा है कि जिस दिन राजीव गांधी की इस यात्रा के छह महीने पूरे हुए, उसी दिन वह फॉलो अप स्टोरी करने उस गांव पहुंचे थे। उन्होंने लिखा, "मैंने उसी जगह से पैदल चलना शुरू किया, जहां से राजीव गांधी ने कार छोड़कर पैदला चलना शुरू किया था। सबसे पहले एक नाली मिली, जिसमें राजीव गांधी ने देखा था कि आदिवासियों के लिए राजस्थान सरकार ने किता अच्छा काम किया है। उस समय नाली सूखी थी। मैंने हाथ लगाया तो बालू मेरे हाथ में आ गया। वहां सिर्फ नाली का ढांचा था। आगे बढ़े तो आदिवासियों के लिए बनाए गए स्कूल दिखा जो पूरी तरह उजड़ा हुआ था। वहां कोई बच्चा नहीं था।"
भारतीय ने आगे लिखा है, "इसके बाद दो वृद्ध आदिवासी पति-पत्नी मिले जिन्हें राजीव गांधी ने 200 रुपये दिए थे। उन दोनों पति-पत्नी ने बताया कि राजीव गांधी ने जो पैसे दिए थे, अगले ही दिन सरकारी कर्मचारी आकर वह पैसे ले गया।" बकौल भारतीय उन्होंने पूरा माहौल शूट किया था और जब वह रिपोर्ट दूरदर्शन पर 'न्यूज लाइन' में प्रसारित हुई तो खबर देखे जाने के पांच दिन बाद ही राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी से प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने खुद इस्तीफा मांग लिया था।
तब राजस्थान कांग्रेस में चरम पर था संघर्ष
हालांकि, जिस वक्त ये इस्तीफा हुआ, उस वक्त राजस्थान में अशोक गहलोत और हरिदेव जोशी के बीच संघर्ष चरम पर था। गहलोत उस वक्त राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष थे। सत्ता और संगठन में दोनों नेता अपने-अपने तरीके से लॉबिंग कर रहे थे। स्थानीय नेता राज्य सरकार की नाकामियों की लिस्ट केंद्रीय नेतृत्व तक पहुंचा रहे थे। पार्टी के लोगों ने तब सती कांड प्रकरण सहित अन्य कमियों को केंद्रीय नेतृत्व तक पहुंचाया था। इससे प्रधानमंत्री राजीव गांधी नाराज चल रहे थे। लेकिन आदिवासी दंपति के प्रकरण से भड़के राजीव गांधी ने हरिदेव जोशी को हटाकर शिवचरण माथुर को मुख्यमंत्री बना दिया था।