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पाक सेना के अत्याचारों से परेशान पश्तून नेता ने सुप्रीम कोर्ट के सामने भरी हुंकार

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 इस्लामाबाद
पाकिस्तान में एक बार फिर सेना के खिलाफ माहौल बनना शुरू हो गया है. पाक आर्मी के अत्याचारों से परेशान लोगों ने सड़कों पर उतरकर अलग देश की मांग करने की तरफ कदम बढ़ाना शुरू कर दिया है. लोगों का कहना है कि अगर पाकिस्तान में हालात नहीं सुधरते हैं तो वह अलग देश की मांग शुरू कर देंगे.

पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में सुप्रीम कोर्ट के ठीक सामने शुक्रवार को एक बड़ी रैली हुई. इस रैली का आयोजन पाकिस्तान में रहने वाले पश्तूनों ने किया. रैली में पश्तूनों के बड़े नेता मंजूर पश्तीन ने आर्मी को चुनौती देते हुए कहा कि अगर पाकिस्तान में ऐसे ही चलता रहा तो वे अलग मुल्क की मांग करने को मजबूर होंगे.

उन्होंने कहा,'पाकिस्तान के नेता आर्मी जनरल्स के गुलाम हैं. पाकिस्तान के अलग-अलग इलाकों में हमले कर रहे तालिबान के पीछे भी पाक आर्मी ही है. पश्तूनों के खिलाफ हो रहे अत्याचारों को तुरंत रोका जाना चाहिए. पाकिस्तान की सेना तालिबान को फौरन रोक ले. क्योंकि, अगर हमने अपना काम करना शुरू कर दिया तो हम रुकेंगे नहीं.'

मंजूर पश्तीन ने कहा कि अगर आप पाकिस्तान को ठीक से नहीं चला पाते हैं और हमें रोज उन्हीं परेशानियों का सामना करना पड़ता है तो हम आजादी की मांग करने के लिए मजबूर हो जाएंगे. अब या तो आपको जिंदगी का हक देना होगा या फिर आजादी की जंग होगी.

इस रैली में पाकिस्तान की पूर्व मंत्री और इमरान खान की पार्टी की बड़ी नेता रहीं शिरीन मजारी की बेटी इमान जैनब मजारी ने भी सेना पर जमकर निशाना साधा. जैनब मजारी ने रैली में कहा कि पाकिस्तानी में होने वाले आतंकी हमलों के लिए पाक अर्मी ही जिम्मेदार है. वही, असली आतंकवादी हैं. जैनब ने मंच से सेना के खिलाफ 'ये जो दहशतगर्दी है, इसके पीछे वर्दी है' जैसे नारे भी लगवाए. जैनब  के अलावा पश्तूनों के बड़े नेता मंजूर पश्तीन ने भी सेना को आड़े हाथों लिया

सुप्रीम कोर्ट के सामने हुआ प्रदर्शन

बता दें कि पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट के सामने पश्तून नेताओं ने पश्तून तहफ्फुज मूवमेंट (PTM) की रैली का आयोजन किया था. यह एक आंदोलन है, जो पिछले 5 सालों से बलूचिस्तान और पाकिस्तान के दूसरे पश्तून बहुल इलाकों में चलाया जा रहा है. 2018 में शुरू हुए इस आंदोलन का उद्देश्य पश्चूनों के मानव अधिकारों की रक्षा करना है.

यूनिवर्सिटी के 8 छात्रों ने की शुरुआत

हालांकि, कहा जाता है कि इस आंदोलन की शुरुआत 9 साल पहले ही हो गई थी. 2014 में खैबर पख्तूनख्वा के डेरा इस्माइल खान में स्थित गोमल विश्वविद्यालय (Gomal University) में आठ छात्रों से इसकी शुरुआत हुई थी. लेकिन इस आंदोलन को रफ्तार पकड़ने में करीब 4 साल लग गए. इस आंदोलन ने गति तब पकड़ी, जब 13 जनवरी 2018 को मशहूर पश्तून नेता नकीबुल्लाह महसूद का कराची में एनकाउंटर कर दिया गया.

आंदोलन को पश्तूनों के बीच मिली पहचान

नकीबुल्लाह महसूद को इंसाफ दिलाने की मांग करते हुए लोगों ने एक बड़े आंदोलन की शुरुआत की. तब महसूद पाकिस्तान के वजीरिस्तान की एक जनजाति का नाम था. लेकिन जब नकीबुल्लाह की मौत के बाद शुरू हुए इस आंदोलन को पश्तूनों के बीच एक नई पहचान मिल गई तो इस महसूद शब्द को हटाकर उसे पश्तून कर दिया गया. इस आंदोलन का मकसद पाकिस्तान की रकार और सेना से कई मांगों को मनवाना था, जिसमें नकीबुल्लाह का एनकाउंटर करने वाले एसएसपी राव अनवर को सजा दिलाना भी शामिल था.