नई दिल्ली
चांद की सतह पर उतरने की तैयारी कर रहे Chandrayaan-3 के लिए शुक्रवार का दिन भी काफी अहम होने वाला है। इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन यानी ISRO का कहना है कि अलग होने की प्रक्रिया के बाद लैंडर अब 'डिबूस्ट' की प्रक्रिया करेगा। इसके जरिए वह खुद को ऑर्बिट में स्थापित करने की कोशिश करेगा। खास बात है कि चांद के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में लैंडिंग की कोशिश यहीं से की जाएगी।
अब तक कैसा रहा चंद्रयान-3 मिशन, ये रहे अलग-अलग पड़ाव
चंद्रयान-3 ने 14 जुलाई को प्रक्षेपण के बाद पांच अगस्त को चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किया। इसके बाद इसने छह, नौ और 14 अगस्त को चंद्रमा की अगली कक्षाओं में प्रवेश किया तथा उसके और निकट पहुंचता गया। जैसे-जैसे मिशन आगे बढ़ता गया तो इसरो ने चंद्रयान-3 की कक्षा को धीरे-धीरे घटाने और उसे चंद्रमा के ध्रुव बिंदुओं पर तैनात करने की प्रक्रियाओं को अंजाम दिया।
भारत के लिए क्यों जरूरी है चंद्रयान-3 मिशन की सफलता?
भारत ने चार सालों में दूसरी बार चांद की सतह पर रोबोटिक लूनर रोवर उतारने का प्रयास किया है। अगर चंद्रयान-3 मिशन सफल हो जाता है, तो भारत चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग की तकनीक हासिल करने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा। अब तक इस सूची में अमेरिका, चीन और पूर्व सोवियत संघ का नाम शामिल है।