चिरैया
कभी स्वतंत्रता आंदोलन का प्रमुख केन्द्र और चरखों की खट-खट की आवाज से स्वावलंबन का संदेश देने वाला मधुबनी आश्रम बदहाली का शिकार है। इस आश्रम में महात्मा गांधी का आगमन हुआ था। सौ कमरों की यह ऐतिहासिक धरोहर आज वीरान पड़ी है। आश्रम के ज्यादातर कमरे ध्वस्त हो गए हैं। आश्रम परिसर में झाड़-झंखाड़ उग आए हैं। कपड़ों की बुनाई और सूत कताई करने वाले चरखों में दीमक लग गए हैं। सरसों की पेराई कर तेल निकालने वाले कोल्हू का अस्तित्व मिट गया है। आश्रम के विशाल भू-भाग पर कब्जा हो रहा है। आश्रम के बांस व जंगल वाली भूमि पर कई लोगों ने अतिक्रमण कर झोपड़ी बना ली है। आजादी की लड़ाई की इस महत्वपूर्ण निशानी का अस्तित्व मिटता जा रहा है।
ऐतिहासिक धरोधर था मधुबनी आश्रम
ऐतिहासिक महत्व की इस राष्ट्रीय धरोहर के संरक्षण के प्रति संवेदनशीलता नहीं दिख रही है। अब तक इसके जीर्णोद्धार के लिए कोई ठोस प्रयत्न नहीं किया। पूर्वी चंपारण जिले के तत्कालीन डीएम एस शिवकुमार ने वर्ष 2002 में आश्रम के जीर्णोद्धार की पहल की थी। उन्होंने कैंप आयोजित कर क्षेत्र के कुछ कामगारों को टूल्स किट्स दिए था। लेकिन उसके बाद कुछ नहीं हुआ। आश्रम के कुछ हिस्सों में खादी ग्रामोद्योग का संचालन हो रहा है, जहां बाहर से कपड़ों को मंगा कर बिक्री की जाती है।
राष्ट्रीय पर्यटन स्थल बने आश्रम
खादी ग्रामोद्योग के प्रबंधक विजय कुमार सिंह बताते हैं, आश्रम को फिर से चालू कराने के लिए कई बार सरकार को पत्र लिखा गया लेकिन नतीजा नहीं निकला। ग्रामीण व गांधीवादी संत प्रसाद सिंह को अब भी उम्मीद है। वे कहते हैं, अभी बहुत कुछ नहीं बिगड़ा है। यदि सरकार चाहे तो इसे उद्योग का स्वरूप देकर कपड़ों की बुनाई शुरू कर बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध करा सकती है। डॉ. कृष्ण नंदन सिंह व डॉ. जितेन्द्र सिंह ने बताया कि इस ऐतिहासिक स्थल को राष्ट्रीय पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया जाना चाहिए।