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Chandrayaan-3 आज ‘दो टुकड़ों’ में बंटा, प्रोपल्शन मॉड्यूल से अलग हुआ विक्रम लैंडर, अब खुद करेगा लैंडिंग तक की यात्रा

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नईदिल्ली. चंद्रयान-3 कामयाबी के साथ चांद की सतह के करीब तक पहुंच चुका है. अब सारी दुनिया की नजर इसकी लैंडिंग पर है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के चंद्र मिशन चंद्रयान-3 ने चंद्रमा के चारों ओर लगभग गोलाकार कक्षा हासिल कर ली है. चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर आज अंतरिक्ष यान के प्रणोदन मॉड्यूल से अलग हो गया है. इसके साथ ही लैंडर और रोवर, प्रज्ञान के 23 अगस्त को चंद्रमा पर उतरने की उम्मीद है. 16 अगस्त की सुबह चंद्रयान-3 ने चांद की पांचवी कक्षा में प्रवेश किया. अब आप सोच रहे होंगे कि जब प्रोपल्शन मॉडयूल और विक्रम लैंडर से अलग होगा तो आगे का सफर लैंडर कैसे तय करेगा.

क्या है पूरी प्रक्रिया?

बता दें कि आज यानी 17 अगस्त को दोपहर करीब 1 बजे चंद्रयान-3 का इंटीग्रेटेड मॉड्यूल दो हिस्सों में बंटा. इसका एक हिस्सा है प्रोपल्शन मॉड्यूल और दूसरा हिस्सा है लैंडर मॉड्यूल. प्रोपल्शन मॉड्यूल के अलग होने के बाद कल प्रोपलेशन मॉड्यूल और लैंडर मॉड्यूल 100 km x 100 km ऑर्बिट में घूमना शुरू करेंगे. हालांकि दोनों में थोड़ी दूरी होगी ताकि ये एक-दूसरे से टकराए नहीं. इसके बाद 18 और 20 अगस्त को लैंडर की डीऑर्बिटिंग कराई जाएगी.

प्रोपल्शन मॉड्यूल चंद्रमा की कक्षा में 3-6 महीने रहकर धरती से आने वाले रेडिएशन्स का अध्ययन करेगा जबकि लैंडर-रोवर 23 अगस्त को शाम 5:47 बजे चंद्रमा की सतह पर उतरेंगे. यहां वो 14 दिन तक पानी की खोज सहित अन्य प्रयोग करेंगे.

बता दें कि प्रोपल्शन से अलग होने के बाद लैंडर को डीबूस्ट किया जाएगा. मतलब उसकी रफ्तार धीमी की जाएगी. यहां से चंद्रमा की न्यूनतम दूरी 30 किमी रह जाएगी. सबसे कम दूरी से ही 23 अगस्त को चंद्रयान की सॉफ्ट लैंडिंग की कोशिश की जाएगी. लैंडर को 30 किमी की ऊंचाई से चंद्रमा की सतह पर लैंड कराने तक की यह प्रक्रिया बहुत महत्वपूर्ण होगी.

इस दौरान परिक्रमा करते हुए उसे अचानक 90 डिग्री के कोण पर चंद्रमा की तरफ चलना शुरू करना होगा. लैंडिंग की प्रक्रिया की शुरुआत में चंद्रयान-3 की रफ्तार करीब 1.68 किमी प्रति सेकंड होगी. इसे लैंडर के डीबूस्टर की मदद से कम करते हुए सतह पर सुरक्षित उतरने का प्रयास किया जाएगा.

अभी तक चार चरण हो चुके हैं सफल

चंद्रयान ने जब पहली बार चंद्रमा की कक्षा में एंट्री की थी तो उसकी ऑर्बिट 164 Km x 18,074 Km थी. ऑर्बिट में प्रवेश करते समय उसके ऑनबोर्ड कैमरों ने चांद की तस्वीरें भी कैप्चर की थीं. इसरो ने अपनी वेबसाइट पर इसका एक वीडियो बनाकर शेयर किया. इन तस्वीरों में चंद्रमा के क्रेटर्स साफ-साफ दिख रहे हैं. अब तक चंद्रयान-3 से संबंधित चार चरण पूरे हो चुके हैं. पांचवां चरण है प्रोपल्शन और लैंडर मॉड्यूल का अलग होना. फिर 23 तारीख की शाम पौने छह बजे लैंडिंग कराई जाएगी. यह आठवां चरण होगा.

लैंडिंग के समय काफी धूल उड़ने की आशंका है. इसलिए धूल के छटने तक लैंडर से रोवर बाहर नहीं आएगा. इसके बाद नौवें चरण में रोवर लैंडर के पेट से बाहर निकलेगा. बाहर निकलने के बाद रोवर प्रज्ञान लगातार लैंडर के आसपास के इलाके की जांच करेगा. जांच करने के बाद वह लगातार अपना डेटा विक्रम लैंडर को भेजेगा. लैंडर अपनी जानकारी को चांद की सतह से 100 किलोमीटर ऊंचाई पर घूम रहे प्रोपल्शन मॉड्यूल को देगा. यहां से डेटा बेंगलुरु स्थित इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क (IDSN) को मिलेगा.

 

तय प्लान के हिसाब से थोड़ा अंतर है ऑर्बिट्स में

चांद के चारों तरफ Chandrayaan-3 का आखिरी वाला ऑर्बिट मैन्यूवर 16 अगस्त 2023 को किया गया था. चंद्रयान-3 अभी 153 km x 163 km की ऑर्बिट में है. जब लॉन्चिंग हुई थी, तब इसरो प्रमुख डॉ. एस. सोमनाथ ने कहा था कि चंद्रयान-3 को 100 किलोमीटर वाली गोलाकार ऑर्बिट में लाएंगे. उसके बाद प्रोपल्शन और विक्रम लैंडर मॉड्यूल अलग होंगे.

Chandryaan-2 में के तय रूट में भी था बदलाव

हालांकि, इस बार ऐसा होता दिख नहीं रहा है. 2019 में चंद्रयान-2 के समय भी 100 किलोमीटर की गोलाकार ऑर्बिट की बात हुई थी. प्लानिंग भी थी. लेकिन लैंडिंग से पहले चंद्रयान-2 की आखिरी ऑर्बिट 119 km x 127 km थी. यानी प्लानिंग के हिसाब से थोड़ा ही अंतर था.

चंद्रयान-3 के ऑर्बिट में दिख रहा अंतर परेशानी नहीं

इसरो के एक सीनियर साइंटिस्ट ने बताया कि चंद्रयान-3 को 100 या 150 किलोमीटर की गोलाकार ऑर्बिट में डालने की प्लानिंग थी. अब भी यही योजना है. यह फैसला हाल ही में लिया गया है. इसलिए 16 अगस्त 2023 को चंद्रयान-3 ने जो ऑर्बिट हासिल किया, यह उसी फैसले का नतीजा था. लैंडिंग में अब सिर्फ छह दिन बचेंगे.

20 के बाद शुरू होगा सबसे कठिन चरण

एक बार जब विक्रम लैंडर को 30 km x 100 km की ऑर्बिट मिल जाएगी, तब शुरू होगा इसरो के लिए सबसे कठिन चरण. यानी सॉफ्ट लैंडिंग. 30 km की दूरी पर आने के बाद विक्रम की गति को कम करेंगे. चंद्रयान-3 को धीमे-धीमे चांद की सतह पर उतारा जाएगा.