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कहानी आजादी कीः फांसी के दिन भी व्यायाम कर रहा था यह क्रांतिकारी, जवाब सुनकर दंग रह गए अंग्रेज

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 नई दिल्ली

देश आजादी की 77वीं वर्षगांठ मना रहा है। आज के इस भारत के पीछे असंख्य लोगों का बलिदान शामिल है। हमारे देश के इतिहास में ऐसे बलिदानी हुए हैं जिनकी दास्तां सुनकर सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। ऐसे ही एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी क्रांतिकारी राजेंद्र लहिड़ी भी थे। अंग्रेजों ने उन्हें फांसी की सजा तो दे दी लेकिन मौत की अंतिम घड़ी तक उनके माथे पर शिकन और चेहरे पर मौत का खौफ नहीं देख पाए। डर खुद अंग्रेजों के ही अंदर समाया था इसलिए तय तारीख से दो दिन पहले ही उन्हें यूपी की गोंडा जेल में फांसी पर चढ़ा दिया गया।

फांसी के दिन भी व्यायाम कर रहे थे लाहिड़ी
राजेंद्र लाहिड़ी फांसी वाले दिन भी सुबह कसरत कर रहे थे। उन्हें देखकर जेलर हैरान हो गया और उनके पास आकर पूछने लगा कि जब आज मौत ही होनी है तो इस कसरत का क्या मतलब निकलेगा। इसपर उन्होंने जो जवाब अंग्रेज अफसर को दिया कि वह दंग रह गया। लाहिड़ी ने कहा, मैं हिंदू हूं और पूर्वजन्म में मेरी आस्था है। मैं चाहता हूं कि अगले जन्म में भी स्वस्थ शरीर के साथ पैदा होऊं ताकि अधूरा काम पूरा कर सकूं और मेरा देश आजाद हो जाए।

काकोरी रेल ऐक्शन की बनाई थी योजना
काकोरी में देश की जनता की खून पसीने की कमाई को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त कराने की घटना को काकोरी ऐक्शन के नाम से जाना जाता है। इसे बहुत सारे लोग काकोरी कांड भी कहते हैं। इस ऐक्शन की योजना राजेंद्रनाथ लाहिड़ी ने ही बनाई थी। 9 अगस्त 1925 को शाहजहांपुर से लखनऊ जा रही 8 नंबर डाउन ट्रेन को काकोरी के पास लूट लिया गया। इसमें भारतीयों के मेहनत की कमाई थी। इससे अंग्रेज अपना खजाना भरना चाहते थे। इसमें राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, चंद्रशेखऱ आजाद, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, मनमथ नाथ गुप्ता और अन्य शामिल थे। मनमथ नाथ गुप्ता से अनजाने मे गोली भी चल गई थी जिसमें एक यात्री की मौत हो गई थी।

दरअसल चंद्रशेखऱ आजाद, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी समेत अन्य क्रांतिकारी चाहते थे कि उन्हें अपने मिशन के लिए जो धन की जरूरत है वह भारतीयों को परेशान करके ना लाया जाए। इससे पहले अंग्रेजों का समर्थन करने वाले जमीदारों को लूटा जाता था। इसलिए काकोरी ऐक्शन का प्लान बनाया गया ताकि अंग्रेजों का खजाना लूटकर इसे देश के काम में लिया जा  सके। काकोरी की घटना के बाद कई क्रांतिकारियों को फांसी की सजा सुनाई गई। उन्हीं में राजेंद्रनाथ लाहिड़ी का भी नाम शामिल था।

कौन थे राजेंद्रनाथ लाहिड़ी
राजेंद्रनाथ के पिता बंगाल प्रेसिडेंसी के पाबना जिले के गांव के जमींदार थे। वह भी स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े थे और कई बार जेल गए। उन्होंने जब राजेंद्रनाथ को पढ़ाई के लिए काशी भेजा तो यहां बीएचयू में उनका संपर्क शचींद्रनाथ सान्याल से हुआ। वह उस समय हेल्थ यूनियन के सेक्रेटरी और बंगाल साहित्य परिष्द के ऑनररी सेक्रटरी थे। बंगाली साहित्य से राजेंद्रनाथ को भी काफी लगाव था। राजेंद्रनाथ को काशी से प्रकाशित होने वाली पत्रिका बंग वाणी का संपादक बना दिया गया। इसके बाद उनके क्रांतिकारी लेख छपने लगे। वह क्रांतिकारियों के साथ संपर्क में आ गए।

काकोरी ऐक्शन के जरिए क्रांतिकारी अंग्रेजों को यह भी संदेश देना चाहते थे कि वे इस तरह से देशवासियों की कमाई को हड़प नहीं कर सकते। राजेंद्रनाथ लाहिड़ी ने ही काकोरी में ट्रेन की चेन खींचकर रोकी और फिर अंग्रेजों द्वारा जमा किया गया खजना लूट लिया गया। इसके बाद क्रांतिकारी लखनऊ की तरफ भाग निकले। राजेंद्रनाथ बाद में कलकत्ता चले गए। बिस्मिल ने उन्हें बम बनाना सीखने के लिए भेजा था। लेकिन उनकी टीम के एक सदस्य की लापरवाही से बम फटा और फिर राजेंद्रनात गिरफ्तार कर लिए गए। जब काकोरी रेल ऐक्शन के क्रांतिकारी पकड़े गए तो उसमें राजेंद्रनाथ का नाम आ गया। इसके बाद उनपर कई धाराओं में मुकदमा चलाया गया और फांसी की सजा सुना दी गई।