नई दिल्ली
मिशन चंद्रयान के बाद भारत अब सूर्य नमस्कार करने की तैयारी में है। सूरज के रहस्य से पर्दा उठाने के लिए इसरो ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। इसी कड़ी में सूरज पर स्टडी करने वाले सैटेलाइट की पहली तस्वीर जारी की गई है। भारत का सूरज की तरफ यह पहला कदम होगा। यह सैटेलाइट प्रक्षेपण के लिए श्रीहरिकोटा पहुंच चुका है। इसरो ने सूरज की स्टडी करने वाले इस मिशन को आदित्य-एल-1 नाम दिया गया है।
गौरतलब है कि सूरज हमारा सबसे करीबी और सोलर सिस्टम का सबसे बड़ा ऑब्जेक्ट है। सूरज की अनुमानित आयु करीब 4.5 बिलियन साल है। यह हाइड्रोजन और हिलियम गैसों का गर्म दहकता हुआ गोला है। धरती से सूरज की दूरी करीब 150 मिलियन किलोमीटर होने का अनुमान है और यह हमारे सौरमंडल के लिए ऊर्जा का स्रोत है। बिना सूरज के धरती पर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
ऐसे मिलेगी मदद
बता दें कि चंद्रयान-3 के 23 अगस्त को चंद्रमा तक पहुंचने की संभावना है। इसके कुछ हफ्तों के अंदर ही मिशन सूरज शुरू होगा। इसके लिए इंडियन स्पेस एजेंसी करीब 1500 किलोग्राम वजनी रोबोटिक सैटेलाइट लांच करने जा रही है। इसके जरिए सूरज पर लगातार नजर रखी जाएगी। इस मिशन के दौरान यह जाना जाएगा कि जब सूर्य गुस्सा होता है तो उसका परिणाम क्या होता है। इसके लिए 400 करोड़ की लागत से सौर वेधशाला तैयार की गई है। इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने कहा कि भारत का आदित्य एल-1 उपग्रह एक प्रकार का अंतरिक्ष आधारित रक्षक है।
यह सौर ज्वालाओं और आगामी सौर तूफानों पर नजर रखता है। उन्होंने आगे बताया कि आदित्य एल-1 सूरज पर लगातार नजर रखेगा। यह हमें धरती पर सौर विद्युत-चुंबकीय प्रभावों के खतरों बारे में वॉर्निंग दे सकता है। समय रहते चेतावनी मिलने से उपग्रहों, और अन्य बिजली और संचार नेटवर्क को बाधित होने से बचाया जा सकता है। सौर तूफान के गुजरने तक उन्हें सुरक्षित ढंग से चलाया जा सकता है।
सूरज की बड़ी भूमिका
बता दें कि धरती पर जिंदगी के लिए सूर्य की बड़ी भूमिका है। यह सोलर रेडिएशन के जरिए पौधों को प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से कार्बन और ग्लूकोज को पकड़ने में मदद करता है। असल में हमारी धरती उस ‘गोल्डीलॉक्स जोन’ में आती है जो न तो सूरज से बहुत दूर है और न ही पास। इससे धरती पर जीवन विकसित होने में आसानी रहती है। इसरो अध्यक्ष ने आगे बताया कि भारत के पास पचास से अधिक उपग्रहों के साथ अंतरिक्ष में 50,000 करोड़ से अधिक की संपत्ति है।
इन सभी को सूर्य के क्रोध से बचाने की जरूरत है। गौरतलब है कि जब सूरज से बड़ी सौर चमक निकलती है तो यह उपग्रहों के इलेक्ट्रॉनिक्स को फ्राई कर सकती है। इन्हें बचाने के लिए स्पेस इंजीनियर इलेक्ट्रॉनिक्स कर देते हैं और सौर तूफान के गुजरने तक सेफ शटडाउन की हालत में रखते हैं।
इसरो ने कही यह बात
इसरो ने कहा कि आदित्य-एल1 मिशन पहले सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंज बिंदु (एल 1) के चारों ओर प्रभामंडल कक्षा से सूर्य द्वारा उत्सर्जित फोटॉनऔर सौर पवन आयनों और इलेक्ट्रॉनों और संबंधित अंतरग्रहीय चुंबकीय क्षेत्र का अध्ययन करेगा। एक तरह से देखा जाए तो इसरो चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग की कोशिश कर रहा है, लेकिन आदित्य उपग्रह के जरिए वह आकाशीय ‘सूर्य नमस्कार’ करने की तैयारी कर रहा है। अंतरिक्ष यान को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लैग्रेंज प्वॉइंट 1 (एल 1) के चारों ओर एक ऑरबिट में रखा जाएगा, जो धरती से करीब 1.5 मिलियन किमी दूर है।
एल 1 प्वॉइंट के चारों ओर ऑरबिट स्थापित सैटेलाइट से सूरज को बिना ग्रहण के लगातार देखा जा सकता है। इससे सोलर एक्टिविटजी के साथ-साथ स्पेस में मौसम पर पड़ने वाले असर पर नजर रखने में मदद मिलेगी। अंतरिक्ष यान में विद्युत चुम्बकीय और कण और चुंबकीय क्षेत्र डिटेक्टरों का उपयोग करके फोटोस्फीयर, क्रोमोस्फीयर और सूर्य की सबसे बाहरी परतों (कोरोना) का निरीक्षण करने के लिए सात पेलोड हैं।