नईदिल्ली
गलवान में 3 साल पहले हुई भारत और चीन के सैनिकों की झड़प के बाद भारत एक्शन मोड में आ गया था. 68 हजार सैनिक, 90 टैंक, 330 BMP पैदल सेना के लड़ाकू वाहन, रडार सिस्टम, तोपखाने की बंदूकें और कई दूसरे हथियार तुरंत ही एयरलिफ्ट कर पूर्वी लद्दाख में पहुंचा दिए गए थे. LAC पर हुई इस झड़प ने भारत को चौकन्ना कर दिया था. स्पेशल ऑपरेशन चलाकर बेहद कम समय में दुर्गम इलाकों तक हथियार और सैनिक पहुंचाए गए थे. यह बात रक्षा क्षेत्र से जुड़े टॉप सोर्स ने एजेंसी को बताई है.
सूत्रों के मुताबिक झड़प के बाद एयरफोर्स ने लड़ाकू विमानों के कई स्क्वाड्रन तैनात कर दिए थे. चौबीसों घंटे निगरानी की जा रही थी. खुफिया जानकारी जुटाने के लिए Su-30 MKI और जगुआर जेट को तैनात किया गया था. इस झड़प को दोनों देशों के बीच दशकों में सबसे गंभीर संघर्ष माना गया था. भारतीय वायुसेना ने चीनी गतिविधियों पर पैनी नजर रखने के लिए बड़ी तादाद में रिमोटली पायलेटेड एयरक्राफ्ट (RPA) तैनात किए थे. आज भी कई विवादित इलाकों में सीमा विवाद जारी है. इसलिए किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए सेना और एयरफोर्स ने उच्च स्तर की तैयारी कर रखी है.
एयरफोर्स की एयलिफ्ट क्षमताएं बढ़ीं
भारतीय वायुसेना के बेड़े में सी-130जे, सुपर हरक्यूलिस और सी-17 ग्लोबमास्टर विमान भी शामिल था. इस पूरे बेड़े का वजन करीब 9 हजार टन था. एयरफोर्स की इस तैनाती से वायुसेना की बढ़ती रणनीतिक एयरलिफ्ट क्षमताओं के बारे में भी पता चलता है. सूत्रों के मुताबिक झड़प के बाद राफेल और मिग-29 विमानों सहित कई लड़ाकू जेट भी गश्त के लिए तैनात किए गए थे. भारतीय वायुसेना ने कई हेलिकॉप्टर्स को गोला-बारूद और दूसरे सैन्य उपकरण पहाड़ी ठिकानों तक पहुंचाने के लिए लगाया था.
चीनी सैनिकों पर थी पैनी नजर
तैनात किए गए Su-30 MKI और जगुआर लड़ाकू विमानों की निगरानी सीमा करीब 50 किमी थी. इनके जरिए यह सुनिश्चित किया गया कि चीनी सैनिकों की स्थिति और गतिविधियों पर पैनी निगरानी रखी जा सके. भारतीय वायुसेना ने कई रडार स्थापित करके तैयारियों को तेजी से बढ़ाया था. वहीं, LAC के सीमावर्ती ठिकानों पर सतह से हवा में मार करने वाले हथियारों की श्रृंखला तैनात कर दी गई थी.
LAC पर इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने पर ध्यान
'ऑपरेशन पराक्रम' के बाद यह दूसरा मौका था, जब भारतीय वायुसेना के ऑपरेशन से बढ़ती एयरलिफ्ट क्षमता के बारे में पता चल सका. इससे पहले दिसंबर 2001 में संसद पर आतंकवादी हमले के बाद, भारत ने 'ऑपरेशन पराक्रम' शुरू किया था, जिसके तहत नियंत्रण रेखा पर भारी संख्या में सैनिक जुटाए गए थे. बता दें कि पूर्वी लद्दाख में गतिरोध के बाद सरकार लगभग 3,500 किमी लंबी एलएसी पर बुनियादी ढांचे के विकास पर जोर दे रही है.
लड़ाकू क्षमताओं को बढ़ाने पर जोर
रक्षा मंत्रालय ने पहले ही पूर्वी लद्दाख में न्योमा एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड (एएलजी) में समग्र बुनियादी ढांचे को बढ़ाने पर काम शुरू कर दिया है, ताकि सभी प्रकार के सैन्य विमान इससे संचालित हो सकें. गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद से सेना ने भी अपनी लड़ाकू क्षमताओं को बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए हैं. इसने पहले ही अरुणाचल प्रदेश में एलएसी के साथ पहाड़ी क्षेत्रों में आसानी से परिवहन योग्य एम-777 अल्ट्रा-लाइट हॉवित्जर तोपों की एक महत्वपूर्ण संख्या तैनात कर दी गई है.
एयलिफ्ट करने के लिए कई विकल्प
वायुसेना के पास अब हथियारों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए कई विकल्प मौजूद हैं. चिनूक हेलिकॉप्टर्स में हथियारों को जल्दी ले जाया जा सकता है. बता दें कि भारत और चीन के सैनिक पूर्वी लद्दाख के कुई इलाकों में पिछले तीन साल से आमने-सामने हैं. जबकि, दोनों पक्षों ने राजनयिक और सैन्य वार्ता के बाद कई क्षेत्रों से सैनिकों की वापसी प्रक्रिया पूरी कर ली है. इस समय भी एलएसी पर भारत और चीन दोनों की तरफ से करीब 50 हजार से 60 हजार सैनिक तेनात हैं.
क्या हुआ था गलवान में?
साल 2020 में 15-16 जून की रात में भारतीय और चीनी सेना के बीच गलवान घाटी में LAC पर हिंसक झड़प हुई थी. भारत की तरफ से इस झड़प में एक कमांडर समेत 20 सैनिक शहीद हो गए थे. हालांकि, चीन के कितने सैनिक मारे गए, इसे लेकर चीन ने कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई. भारत की तरफ से दावा किया गया कि इस झड़प में चीनी सैनिक भी हताहत हुए हैं. बाद में चीन ने कहा कि उसके 4 सैनिक गलवान में मारे गए थे.
नदी में बहे 38 चीनी सैनिक!
ऑस्ट्रेलिया के न्यूजपेपर 'द क्लैक्सन' (The Klaxon) में एक रिपोर्ट छपी. रिपोर्ट में चीनी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म Weibo के हवाले से कहा गया कि उस रात कम से कम 38 चीनी सैनिक डूब गए थे. जबकि चीन ने सिर्फ 4 सैनिकों की मौत की बात कबूली. रिपोर्ट में कहा गया है कि उस रात वास्तव में क्या हुआ था, किस वजह से झड़प हुई. इसके बारे में बहुत सारे फैक्ट बीजिंग द्वारा छिपाए गए.