मोतिहारी
पूर्वी चंपारण का महत्वपूर्ण तीर्थ क्षेत्र अरेराज का सोमेश्वरनाथ मंदिर। वैसे तो यहां सालोंभर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है, लेकिन सावन यह संख्या लाखों में पहुंच जाती है। इस मंदिर का संबंध त्रेता युग से माना जाता है। मान्यता है कि विवाहोपरांत जनकपुर से अयोध्या जाने के क्रम में भगवान राम अपनी धर्मभार्या सीता के साथ तीर्थराज अरेराज आए थे। यहां अपने अखंड सुहाग की रक्षा के लिए भगवती सीता ने माता पार्वती को सिंदूर अर्पण किया था। इसके बाद से यहां सावन के महीने में माता पार्वती को सिंदूर चढ़ाकर सिंहोरे में नूतन सिंदूर रखने की प्रथा चल रही है। इसी मंदिर के समीप है शाकंभरी वाटिका। बाबा सोमेश्वरनाथ मंदिर की समकालीन इस वाटिका के फूल से वैदिक मंत्रोच्चार के बीच बाबा की सायंकालीन शृंगार पूजा की परंपरा है। सावन के महीने में नव दंपती इस वाटिका में आकर अपने दीर्घ दांपत्य जीवन और खुशहाली की कामना करते हैं।
महामंलेश्वर व सोमेश्वर पीठाधीश्वर स्वामी रविशंकर गिरि महाराज बताते हैं, माता सीता ने माता पार्वती को सिंदूर अर्पण किया था। इसके बाद से यहां सावन में सिंदूर चढ़ाने की परंपरा चल रही है। नेपाल के जनकपुर की पुष्पवाटिका में भगवान राम व सीता का प्रथम मिलन हुआ था। उसी मान्यता के अनुरूप आज भी नवविवाहिता पार्वती मन्दिर में सिंदूर चढ़ाकर माता शाकम्भरी पुष्प वाटिका में खिले सिंदूर के वृक्ष व फल के दर्शन कर अपने दीर्घ और सुखद दाम्पत्य जीवन की कामना करती हैं।
शाकंभरी पुष्पवाटिका में सिंदूर, कपूर, रुद्राक्ष, विल्वपत्र, कमल, मौलश्री, डेजर्ट रोज, कमल, शमी, गेंदा, अपराजिता, सदाबहार, तगर, गन्धराज, हरसिंगार, बेली, चमेली, अड़हुल, लीली, डेजी, सेव, गजनिया, गुलदाउदी, फेसिया, ग्लेडुलस, कैलेंडुला, हलीहाक, एडेनियम समेत विभिन्न प्रजातियों के पत्र व पुष्प लगे हुए हैं। यह वाटिका इन दिनों युवक-युवतियों के लिए सेल्फी प्वाइंट भी बनी हुई है।