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वाराणसी में बापू-विनोबा और जेपी की यादों पर चला बुलडोजर, विरोध पर कई हिरासत में

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 वाराणसी

वाराणसी में आज सुबह से सर्व सेवा संघ परिसर में स्थित भवनों पर बुलडोजर गरजना शुरू हो गए हैं। सुबह  वाराणसी जिला प्रशासन के अधिकारी भारी लाव-लश्कर के साथ विनोबा-जेपी की तपोस्थली पहुंचे और बुलडोजर से सबसे पहले परिसर में स्थित गेस्ट हाउस को ध्वस्त किया। गांधी-विनोबा-जेपी को मानने वाले सर्व सेवा संघ परिसर के पास इकट्ठे होकर विरोध कर रहे हैं। लेकिन पुलिस उन्हें अंदर दाखिल नहीं होने दे रही है। ध्वस्तीकरण जारी है। परिसर में भारी संख्या में पुलिस बल मौजूद है।

वहीं आपको बता दें कि दो दिन पहले किसान राकेश टिकैत, योगेंद्र यादव और मेधा पाटेकर ने सर्व सेवा संघ परिसर को बचाने के लिए आवाज बुलंद की। राकेश टिकैत ने कहा था कि यदि सरकार ने बुलडोजर चलाया तो अपने ट्रैक्टर हम दिल्ली के आगे बनारस भी मोड़ सकते हैं। जमीन बचाने को लेकर पिछले करीब 80 दिन से सर्व सेवा संघ के लोगों ने जीतोड़ धरना प्रदर्शन किया। जमीन के कई कागज भी दिखाए, मगर सारे दावे नकार दिए गए।

बनारस में सबसे दक्षिणी इलाके में बने नमो घाट से सटे राजघाट की 13 एकड़ जमीन पर सर्व सेवा संघ प्रकाशन, गांधी विद्या संस्थान, साधना स्थल, गांधी स्मारक, जेपी प्रतिमा व आवास, वाचनालय, औषधालय, बालवाड़ी, अतिथि गृह, चरखा प्रशिक्षण केंद्र और डाकघर बने हैं। पेड़-पौधों से सुसज्जित परिसर हरा-भरा है। कभी यहां गांधी विचार से प्रेरित लोगों की जुटान होती थी। यहां आचार्य विनोबा भावे, लोकनायक जयप्रकाश नारायण, अंतरराष्ट्रीय स्कॉलर शूमाकर जैसी हस्तियां आ चुकी हैं।

यह जमीन ऐसी जगह पर स्थित है जहां पानी, सड़क और रेल तीनों से यातायात की सुविधा उपलब्ध है। ऐसे में सरकार ने यहां पर एक बड़ा प्रोजेक्ट का ब्लूप्रिंट तैयार किया है। पूरी जमीन कभी रक्षा मंत्रालय की थी। रक्षा मंत्रालय से यह जमीन रेलवे ने खरीद ली। बाद में रेलवे ने यह जमीन सर्व सेवा संघ को बेच दी। कुछ समय पहले जमीन के मालिकाना हक को लेकर विवाद हुआ और मामला हाईकोर्ट पहुंच गया। हाईकोर्ट ने वाराणसी के जिलाधिकारी को मामला देखने को कहा। हाईकोर्ट के आदेश के बाद वाराणसी के जिलाधिकारी ने 26 जून 2023 को दिए गए अपने फैसले में यह माना कि रेलवे ने यह ज़मीन साल 1941 में रक्षा विभाग से खरीदी थी। इस ज़मीन को आगे चलकर किसी निजी संगठन अथवा व्यक्ति को बेचने की नीति नहीं थी।

इसके अलावा जिलाधिकारी ने यह भी कहा है कि अगर ज़मीन बेचनी ही थी तो रेलवे बोर्ड की पूर्व अनुमति के साथ सार्वजनिक निविदा के प्रकाशन के साथ यह कार्य किया जाना चाहिए था। डीएम ने यह भी कहा था कि याची अपनी सेल डीड की सत्यता का सत्यापन नहीं करा पाए हैं। याचियों ने डीएम के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन वहां उन्हें कोई राहत नहीं मिली। अलबत्ता एक सलाह देते हुए कोर्ट ने कहा कि वह स्थानीय न्यायालय में लंबित मुकदमे के मामले में आवेदन कर सकते हैं। सर्व सेवा संघ ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की। वहां से भी निराशा हाथ लगी। सुप्रीम कोर्ट ने स्थानीय अदालत जाने की सलाह दी। इसके बाद सर्व सेवा संघ की ओर से सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट में वाद दाखिल हुआ। इस मामले में सुनवाई शुरू नहीं हुई है।