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Chandrayan-3: चंदा मामा अब कितने दूर? चंद्रयान-3 के रूसी लूना-25 से टकराने का भी खतरा, जानिए डिटेल

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 नई दिल्ली
भारत का चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) मून मिशन की तरफ लगातार बढ़ रहा है। 9 अगस्त को इसरो ने जानकारी दी कि चंद्रयान-3 चांद के और नजदीक आ गया है। दोपहर में इसके ऑर्बिट को बदलकर 5000 किलोमीटर की आर्बिट में डाला गया। इस तरह अब तीन चरण और बाकी हैं। जिसके बाद 23 अगस्त को चंद्रयान-3 इतिहास रचेगा। इसरो का कहना है कि 9 अगस्त को उसने चांद पर मौजूद ट्रैफिक का भी अध्ययन किया। ट्रैफिक से मतलब उनका उल्का पिंडो, ग्रहों और यानों से है, जो चांद की कक्षा पर पहले से घूम रहे हैं। इनमें से कई यान निष्क्रिय हो चुके हैं। इसके अलावा रूस का लूना-25 भी धरती से मून मिशन पर जाने को तैयार है। ऐसी संभावना है कि लूना-25 और चंद्रयान-3 की चांद की लैंडिंग उसी दिन या उसी वक्त हो सकती है। ऐसे में क्या ऐसी कोई संभावना है कि चंद्रयान-3 और रूस का लूना-25 मिशन आपस में टकरा जाएं? चलिए जानते हैं।

चंद्रयान-3 जैसे-जैसे मून मिशन की तरफ तेजी से बढ़ रहा है, धुकधुकी बढ़ती जा रही है। दुनिया भर की नजरें इसरो के मून मिशन पर टिकी हैं। भारत का चंद्रयान-3 मिशन चंद्रयान-2 का ‘अनुवर्ती’ मिशन है जिसका उद्देश्य चंद्रमा पर एक अंतरिक्ष यान की सॉफ्ट लैंडिंग करना है। इसके अलावा चांद की सतह का पता लगाने के लिए एक रोवर तैनात करेगा। यह रोवर चांद की संरचना और जियोलॉजी पर डेटा एकत्र करेगा। वहीं, रूस का लूना-25 मिशन जिसे 11 अगस्त को लॉन्च किया जाना है। यह सात दिनों में चांद पर उतरने की कोशिश करेगा। चांद पर लैंडिग के पीछे रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रोस्कोस्मोस का उद्देश्य चांद के ध्रवीय रेजोलिथ की संरचना और चांद के ध्रवीय बाह्यमंडल के प्लाज्मा और धूल घटकों का अध्ययन करना है।

लूना-25 से चंद्रयान-3 को खतरा?
रूस की अंतरिक्ष एजेंसी  रोस्कोस्मोस स्पष्ट कर चुका है कि उसके और भारत के यान के आपस में टकराने की संभावना न के बराबर है। कहा कि चांद पर काफी स्पेस है, इसलिए किसी के भी मून मिशन को कोई खतरा नहीं है। रोस्कोस्मोस ने साफ किया कि लूना-25 के लिए प्राथमिक लैंडिंग साइट चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास है जो दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। वहीं, चंद्रयान-3 का लैंडिंग स्थल दक्षिणी क्षेत्र में स्थित है।

चंद्रयान-3 मिशन से कितना दूर
9 अगस्त को इसरो ने जानकारी दी थी कि दोपहर पौने दो बजे  इसके ऑर्बिट को बदलकर 4 से 5 हजार किलोमीटर की ऑर्बिट में सफलतापूर्वक डाल दिया गया है। जैसे-जैसे यान चांद के करीब पहुंचेगा, उसकी गति को कम किया जाएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि चांद पर पृथ्वी से 6 गूना कम गुरुत्वाकर्षण होता है। इसरो की कोशिश है कि चांद पर यान की सॉफ्ट लैंडिंग हो सके। अगर लैंडिंग के वक्त स्पीड ज्यादा रही तो लैंडिंग में परेशानी हो सकती है। अगले चरण में 14 अगस्त को इसकी गति को घटाकर 1000 किलोमीटर किया जाएगा। पांचवें ऑर्बिट मैन्यूवर में इसे 100 किलोमीटर की कक्षा में डाला जाएगा।

17 अगस्त का दिन अहम
वहीं, 17 अगस्त चंद्रयान-3 के लिए काफी अहम है। इस दिन प्रॉपल्शन मॉड्यूल और लैंडर मॉड्यूल अलग-अलग किए जाएंगे। जबकि, 18 व 20 अगस्त  को डीऑर्बिटिंग होगी। यानी चांद के ऑर्बिट की दूरी को और कम किया जाएगा। लैंडर मॉड्यूल 100 x 35 KM के ऑर्बिट में जाएगा। अगर सब कुछ ठीक रहा तो 23 अगस्त को शाम पांच बजकर 47 मिनट पर चंद्रयान की सॉफ्ट लैंडिंग की कोशिश कराई जाएगी।