Home देश 12 हजार करोड़ की कंपनी लेकिन कारोबारी ने MBA पास पोते से...

12 हजार करोड़ की कंपनी लेकिन कारोबारी ने MBA पास पोते से से बिकवाए कपड़े, होटल में बना वेटर

1

सूरत
डायमंड नगरी सूरत के डायमंड कारोबारी सावजी भाई ढोलकिया से भला कौन परिचित नहीं है. दीपावली बोनस में अपनी डायमंड फैक्ट्री में काम करने वाले कर्मचारियों को कारें, मकान और ज्वैलरी गिफ्ट करने वाले सावजी भाई ढोलकिया अब अपने पोते को मजदूरी के लिए भेजकर सुर्खियों में हैं.  

सावजीभाई की नेट वर्थ आज भले ही 1.5 बिलियन डॉलर यानी करीब साढ़े 12 हजार करोड़ से ज्यादा है. लेकिन इस कारोबारी  ने अमेरिका से मास्टर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन (MBA) की पढ़ाई पूरी करके लौटे पोते रुविन ढोलकिया को एक गुमनाम और आम आदमी का जीवन जीने के लिए चेन्नई भेज दिया. उद्देश्य उसे बिजनेस स्कूल में सिखाई गई शिक्षा से परे असल जिंदगी के असल मैनेजमेंट की शिक्षा प्रदान करना था.

दादा के आदेश पर रुविन ढोलकिया 30 जून को सूरत से चेन्नई के लिए रवाना हुए. उन्हें अपनी पहचान उजागर न करने का आदेश दिया गया था. यहां तक कि मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने से वंचित कर दिया गया और उन्हें जरूरत पड़ने पर आपातकालीन स्थित के लिए महज 6000 रुपए की मामूली राशि दी गई.

चेन्नई पहुंचने के बाद रुविन का पहला काम नौकरी की ढूंढना था. हालांकि यह उनके लिए बड़ी चुनौती से भरा रहा, क्योंकि उन्हें आश्चर्यजनक रूप से एक के बाद एक कई जगहों पर रिजेक्शन का सामना करना पड़ा. रुविन की पहली नौकरी सेल्समैन एक के रूप में एक गारमेंट शॉप में थी, जो चेन्नई हाईकोर्ट मेट्रो के पास मौजूद है. यहां उन्होंने 9 दिन तक नौकरी की और अपने भीतर बिक्री कौशल को निखारा.

इसके बाद, हजारों करोड़ रुपए की कंपनी के मालिक के वारिस रुविन ने 8 दिनों तक एक भोजनालय में काम किया और वेटर के रूप में कुशलता से प्लेट सेटिंग और परोसने का प्रबंधन का सीखा. फिर होटल की नौकरी छोड़ 9 दिनों तक वॉच आउटलेट में सेल्समैन के रूप में काम किया. साथ ही घड़ी की मरम्मत में भी सहायता करते थे. रुविन की आखिरी नौकरी एक बैग और सामान की दुकान पर थी. जहां उन्होंने दो दिनों तक मजदूर के रूप में काम किया.

अपनी 30-दिवसीय यात्रा के दौरान रुविन ने चार अलग-अलग नौकरियां कीं. 80 से ज्यादा रिजेक्शन का भी सामना किया. प्रतिदिन 200 रुपए के खर्च करने की छूट पर जीना था. वह चेन्नई में एक मामूली छात्रावास में रहे और अक्सर केवल एक समय का भोजन ही कर पाते थे.

रुविन की मानें तो इसे दैनिक चुनौतियों के रूप में देखने के बजाय, उन्होंने इन्हें अपने विकास के अवसरों के रूप में देखा. उनके सामान्य जीवन के अनुभव ने उन्हें आवश्यकता के मूल्य को पूरी तरह से अपनाने की अनुमति दी.

अपनी 30 दिनों के वनवास को लेकर रुविन ने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया, नौकरी के लिए जब रिजेक्ट होते थे तो उन्हें 'न' का दर्द समझ में आया. ज़िंदगी में कमी को महसूस किया. वहीं, होटल में वेटर की नौकरी के दौरान जब उन्हें 27 रुपए का टिप मिला तो वो पल उनके लिए सबसे खास था. रुविन की मानें तो वो 27 रुपये उन्हें करोड़ रुपये की फीलिंग दे रहे थे.

लेकिन, नौकरी छोड़ते समय जब वेतन के लिए होटल मालिक ने 6 घंटे तक उन्हें खड़ा रखा और उनके सामने 2000 रुपये फेंक दिए, तब उन्हें मेहनतकशों के साथ व्यवहार की सीख की समझ हुई.

इसी तरह बैग की दुकान में मजदूरी करते समय 10-11 घंटे जमीन पर बैठकर काम किया तो काम की कद्र मालूम हुई. रुविन ईश्वर का आभार मानते हैं कि परमेश्वर ने उन्हें ऐसे परिवार में जन्म दिया है जहां उनकी अच्छी शिक्षा और परवरिश हुई है. इस कठिन यात्रा दौरान रुविन 8,600 रुपये कमाने में सफल रहे. रुविन की यह यात्रा 30 जुलाई को समाप्त हुई जहां उनके आगमन पर परिजनों की ओर से उनका स्वागत समारोह का आयोजन किया गया.

उल्लेखनीय है कि देश में सबसे बड़ी हीरा कंपनियों में से एक बनाने में उनकी सफलता की कहानी के अलावा विश्व स्तर पर 1.5 बिलियन डॉलर के टर्नओवर के साथ सावजीभाई ढोलकिया अपनी अपार प्रतिभा के लिए जाने जाते हैं. विनम्रता और परोपकारिता की मिशाल बन चुके सावजी भाई को दिलदार बॉस के नाम से भी लोग पहचानते हैं. वह हर दीपावली पर अपने कर्मचारियों को भव्य दिवाली बोनस प्रदान करने के लिए विश्व स्तर पर प्रसिद्ध हैं. बोनस के तौर पर अपने कर्मियों को कार, फ्लैट और आभूषण उपहार में देने की परंपरा बनाया है.

सावजीभाई ढोलकिया ने सौराष्ट्र के अपने लाठी गांव में 125 झीलें बनाकर 'लेक मैन ऑफ इंडिया' का खिताब भी हासिल किया है. इससे आसपास के 75 से अधिक गांवों के 2 लाख से अधिक किसानों को लाभ हुआ है. उन्होंने और भी पौधे लगाए हैं. इतना ही नहीं, सावजीभाई ने भारत में विभिन्न स्थानों पर 25 लाख से अधिक पेड़ लगवाए हैं.

गौरतलब है कि रुविन , सवजीभाई ढोलकिया के पारिवारिक पौत्र हैं. सवजीभाई के पिता और रुविन के दादा के पिता सगे भाई थे. लेकिन, पिछले दो दशक से दोनों परिवार हीरा कारोबार में साझेदारी में कार्य कर रहा है और रूबिन के पिता राजू भाई ढोलकिया पूरे कारोबार का हिसाब किताब रखते हैं.