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इस्लाम में कई शादियां जरूरी नहीं…बहुविवाह के खिलाफ कानून लाएगी असम सरकार; सीएम सरमा ने किया ऐलान

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 गुवाहाटी
असम में हिमंत बिस्वा सरमा की सरकार बहुविवाह को खत्म करने के लिए कानून बनाने की तैयारी कर चुकी है। सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज की अगुआई में बनाई गई कमेटी ने सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। रिपोर्ट मिलने के कुछ घंटे के बाद ही सरमा सरकार ने ऐलान कर दिया कि विधनसभा में बहुविवाद को खत्म करने के लिए प्रस्ताव पेश किया जाएगा और इसे कानून की शक्ल दी जाएगी। बता दें कि रिपोर्ट में कमीशन ने कहा है कि इस्लाम में चार शादियां करना जरूरी नहीं बताया गया है। सीएम सरमा ने कहा कि इसी वित्त वर्ष में विधानसभा में विधेयक पेश कर दिया जाएगा।

राष्ट्रपति से लेनी होगी अंतिम सहमति
सरमा ने कहा कि विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि बहुविवाह को समाप्त करने के लिए राज्य में कानून बनाया जा सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है, एक्सपर्ट कमिटी के सभी सदस्यों  के विचार जानने के बाद यह नतीजा है कि बहुविवाह को खत्म करने के लिए कानून बनाया जा सकता है। हालांकि इसपर अंतिम सहमति राष्ट्रपति से लेनी होगी। असम में अगर यह कानून बनता है तो राष्ट्रपति से इजाजत लेनी इसलिए जरूरी होगा क्योंकि यह शरीयत कानून 1937 से अलग होगा। यह एक केंद्रीय कानून है जो कि मुस्लिमों की शादी और तलाक से संबंधित प्रावधान सुनिश्चित करता है। इसलिए अगर कोई राज्य पहले से मौजूद कानून के प्रावधानों से अलग कोई कानून बनाना चाहता है तो उसे राष्ट्रपति से सहमति लेना जरूरी है। हालांकि क्योंकि यह मामला केंद्र और राज्य दोनों के दायरे में आता है इसलिए राज्य में भी कानून बनाया जा सकता है।

कमेटी ने कहा, मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत बहुविवाह को इजाजत दी गई है लेकिन इसे जरूरी नहीं बताया गया है। किसी मुस्लिम पुरुष के लिए जरूरी नहीं है कि चार विवाह तक करे। इसलिए इस्लाम में यह कोई जरूरी प्रथा नहीं है। इसलिए अगर कानून बनाया जाता है तो यह संविधान के आर्टिकल 25 का उल्लंघन नहीं होगा। असम सरकार ने यह समिति 12 मई को बनाई थी। इसकी अध्यक्ष न्यायमूर्ति (रिटायर्ड) रूमी कुमारी फुकन थीं। उनके अलावा समिति में महाधिवक्ता देवजीत सैकिया, वरिष्ठ अधिरिकत महाधिवक्ता नलिन कोहली, सीनियर वकील नकीब उर जमां भी शामिल थे। समिति से 60 दिन के भीतर रिपोर्ट देने को कहा गया  था।

क्या समान नागरिक संहिता की ओर है एक कदम
असम सरकार का यह कदम समान नागरिक संहिता की ओर एक कदम के रूप में देखा जा रहा है। देश में इस समय यूसीसी को लेकर बहस तेज है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक बयान ने इस मामले को और भी धार दे दी थी। उन्होंने कहा था कि क्या एक ही परिवार में हर सदस्य के लिए अलग कानून हो सकता है। ऐसे घर नहीं चल सकता।