मुंबई
बॉलीवुड के चर्चित गीतकार और लेखक जावेद अख्तर (Javed Akhtar) ने कहा कि वे मानते हैं कि देश में समान नागरिक संहिता (UCC) की आवश्यकता है और वह खुद इसके पक्ष में हैं लेकिन केंद्र सरकार को सबसे पहले यूसीसी (Uniform Civil Code) का ड्राफ्ट सामने रखना चाहिए। बिना ड्राफ्ट के समान नागरिक संहिता पर कोई भी बहस और अनुमान लगाने का कोई तुक नहीं है। द वायर को दिए इंटरव्यू में जावेद अख्तर ने स्पष्ट किया कि मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण बात लड़कियों व महिलाओं के साथ लैंगिक समानता को सुनिश्चित करना है।
एक्सपर्ट्स तैयार करें ड्राफ्ट
वरिष्ठ पत्रकार करण थापर (Karan Thapar) से बातचीत में जावेद अख्तर ने कहा कि यूनिफॉर्म सिविल कोड का ड्राफ्ट एक्सपर्ट्स को तैयार करना चाहिए ना कि नेताओं को। यूसीसी (Uniform Civil Code) के ड्राफ्ट में नेताओं का हस्तक्षेप होना ही नहीं चाहिए। एक बार ड्राफ्ट तैयार हो जाए तो इस पर देश के नागरिकों, अलग-अलग समुदाय के लोगों और संस्थानों से उनकी राय लेनी चाहिए। अभी समान नागरिक संहिता पर जिस तरह की बहस है और जो चीजें हो रही हैं, सब गलत दिशा में हैं।
UCC के पीछे BJP की क्या मंशा?
क्या पीएम मोदी (PM Narendra Modi) या बीजेपी समान नागरिक संहिता के मुद्दे को राजनीतिक तौर पर भुनाना चाहती है? इस सवाल पर जावेद अख्तर कहते हैं कि यूनिफॉर्म सिविल कोड का आइडिया पीएम नरेंद्र मोदी का थोड़ी है। इसका जिक्र तो संविधान में है। अब प्रधानमंत्री इसका जिक्र क्यों कर रहे हैं, इसके पीछे कोई राजनीतिक मंशा है…मेरी इसमें दिलचस्पी नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि क्या हमें समान नागरिक संहिता की जरूरत है या नहीं।
क्या मुस्लिम हैं निशाने पर?
कुछ लोगों को लगता है कि पीएम मोदी और बीजेपी, यूनिफॉर्म सिविल कोड के जरिये मुस्लिमों में बहु-विवाह को निशाना बना रही हैं? इस सवाल पर जावेद अख्तर कहते हैं कि हम बस अनुमान लगा रहे हैं। एक तरफ आप कहते हैं कि सरकारी डाटा के मुताबिक मुस्लिमों के मुकाबले हिंदुओं में कहीं ज्यादा बहु-विवाह के मामले हैं तो फिर अकेले मुस्लिमों का जिक्र क्यों कर रहे हैं? यूनिफॉर्म सिविल कोड का असर तो सभी धर्म और समुदाय के लोगों पर पड़ेगा।
जावेद अख्तर कहते हैं अंडमान निकोबार से लेकर झारखंड और छत्तीसगढ़ में रहने वाले सेंटीनलीज, संथाल, जारवा जैसे आदिवासियों की अपनी एक अलग पहचान है। उन्हें इससे (यूसीसी से) बाहर रखा जाना चाहिए, क्योंकि हमें इस बात के प्रति और संवेदनशील होना होगा की उनकी अलग दुनिया है। इसी तरह पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में बहुसंख्यक आदिवासी हैं। उन्हें भी बाहर रखना चाहिए।