रांची
कोल्हान प्रमंडल के जिलों में अच्छी बारिश नहीं होने से किसान परेशान हैं. खेत सूखने लगे हैं. वहीं, खेतों में डाले बिचड़े खराब होने लगे हैं. इन क्षेत्रों में सूखाड़ की स्थिति उत्पन्न होने लगी है. अब तो क्षेत्र के किसान सूखाड़ घोषित करने की मांग करने लगे हैं.
पश्चिमी सिंहभूम के जैंतगढ़ के खेतों में पड़ने लगी दरार
पश्चिमी सिंहभूम के जैंतगढ़ और उसके आसपास के क्षेत्रों में बारिश के अभाव में कोहराम मचा है. खेत सुने पड़े हैं. मजदूरों के हाथ में काम नहीं है. किसानों की हालत खस्ता है. बाजार पस्त हो चुका है. क्षेत्र में आषाढ़ पूरी तरह सूखे में तब्दील हो गया. किसानों को सावन से बड़ी आस थी. सावन का महीना भर होने को है, पर इंद्र देव की कृपा अभी तक नहीं हुई है. खेतों में दरार पड़ने लगी है. रोपनी के लिए लगाए गए बिचड़े खेतों में ही बर्बाद हो रहे हैं. अधिकांश किसानों ने बारिश की हालत देख अभी तक खेती का काम शुरू भी नहीं किया है.
झारखंड में धीमी रही मानसून की रफ्तार
गौरतलब है कि इस वर्ष झारखंड में मानसून एक हफ्ते की देरी से 18 जून को आया। इसके बाद भी मानसून की रफ्तार काफी धीमी रही। सामान्य दिनों में जहां जून-जुलाई में 455 मिमी से अधिक बारिश होती है लेकिन इसी अवधि में इस वर्ष 48 फीसदी कम बारिश रिकॉर्ड की गई। अनियमित मानसून की वजह से धान की खेती के लिए पर्याप्त बारिश नहीं हुई। मौसम विभाग ने 28 से 30 जुलाई के बीच पूरे प्रदेश में भारी बारिश का पूर्वानुमान व्यक्त किया था। बारिश हुई लेकिन इतनी नहीं कि रोपनी के लिए खेतों में पर्याप्त पानी इकट्ठा हो सके।
मानसून की बेरुखी से सूखे की आशंका
बता दें कि पिछले वर्ष भी मानसून की बेरुखी से सूखा पड़ा था। पूरे संताल परगना सहित कई जिलों में खेती नहीं हो सकी। झारखंड सरकार ने सर्वेक्षण के आधार पर 24 में से 22 जिलों के 226 प्रखंडों को सूखा प्रभावित घोषित किया था और प्रति किसान 3500 रुपये का राहत पैकेज दिया था। केंद्र से भी सूखा राहत के तहत 9 हजार करोड़ रुपये की मांग की गई थी लेकिन वह अभी नहीं मिल सका है। अब दूसरे वर्ष भी मानसून ने दगाबाजी की।