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सेवा को नियमित करने के मामले में शिकायत करने को न्यायालय की अवमानना के रूप में नहीं लिया जा सकता – सुप्रीम कोट

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अधिकारियों को नोटिस भेजकर अदालत में तलब करना ठीक नहीं है। इससे न्याय प्रशासन का उद्देश्य पूरा नहीं होता। व्यवस्था में न्यायपालिका और प्रशासन की शक्तियां अलग-अलग हैं और ये पूरी तरह से स्पष्ट हैं। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि सरकारी अधिकारियों को तलब करने से उनके कामकाज में बाधा आती है और इससे जनता का हित प्रभावित होता है। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने यह बात दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों के नियमितीकरण के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को रद करते हुए कही। मामले में आगरा के सामाजिक वानिकी विभाग के उप निदेशक ने हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर की थी। पीठ ने कहा, सेवा को नियमित करने के मामले में शिकायत करने को न्यायालय की अवमानना के रूप में नहीं लिया जा सकता। हाई कोर्ट द्वारा तमाम मामलों में अधिकारियों को अदालत में तलब करना उचित नहीं ठहराया जा सकता। कार्यपालिका से जुड़े अधिकारियों को अदालत में तलब करना उचित चलन नहीं है। इससे प्रशासन का उद्देश्य पूरा नहीं होता। अगर प्रशासन का कोई आदेश वैध नहीं है तो अदालत उस आदेश को रद कर दे और स्पष्ट करे कि कार्यपालिका का आदेश मामले से जुड़ी कानूनी मान्यताओं के अनुसार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने मामले में हाई कोर्ट द्वारा अवमानना की कार्रवाई को गैर न्यायायिक करार दिया