इंदौर
गुजरात राज्य की सीमा से सटे निमाड़ और मालवा का राजनीतिक महत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह अच्छी तरह जानते है। इस बार अमित शाह हर हाल में मिशन मालवा निमाड़ फतह करना चाहते है, क्योकि सत्ता को बरकार रखने के लिए मालवा-निमाड़ की 66 में ज्यादातर सीटें जीतना भाजपा के लिए जरुरी है। 2018 के चुनाव में भाजपा को 29 सीटें मालवा निमाड़ से मिली थी, जो सत्ता गंवाने की वजह बनी थी।
इंदौर में केंद्रीय मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में भाजपा का संभागीय सम्मेलन महत्वपूर्ण माना जा रहा है। मालवा निमाड़ की जिम्मेदारी वे अघोषित रुप से उनके विश्वस्त कैलाश विजयवर्गीय को दे सकते है। विजयवर्गीय भी खुद को साबित करने में मालवा निमाड़ में कड़ी मेहनत इसलिए करेंगे,क्योकि प्रदेश में चुनाव को लेकर बनी महत्वपूूर्ण समितियों में उन्हें ज्यादा महत्व नहीं मिला।
भाजपा का टारगेट मालवा निमाड़ की 50 सीटें
मध्य प्रदेश की राजनीति में मालवा निमाड़ की 66 सीटेें महत्वपूर्ण मानी जाती है। भाजपा ने इस बार मालवा निमाड़ की 50 सीटों पर सफलता पाने का टारगेट रखा है। कमजोर सीटों पर अभी से उम्मीदवारों के लिए सर्वे हो रहा है। मालवा निमाड़ के चुनावी ट्रेंड की बात करे तो पिछले चार विधानसभा चुनाव में तीन बार भाजपा को कांग्रेस से ज्यादा सीटेें मिली और भाजपा सरकार बनाने में सफल रही। 2003 के चुनाव मेें 66 में से 47 सीटें भाजपा ने जीती थी।
इसी तरह 2008 के चुनाव मेें 42 सीटें भाजपा को मिली। 2014 के चुनाव मेें भाजपा को 56 और कांग्रेस को 9 सीटें ही मिल पाई थी। तीनों बार भाजपा की मध्य प्रदेश में सरकार बनी। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को 29 सीटें मिली और 15 साल बाद कांग्रेस का वनवास मालवा निमाड़ नेे 34 सीटें देकर खत्म किया था।
आदिवासी बाहुल्य जिलों मेें भाजपा का प्रदर्शन था खराब
पिछले विधानसभा चुनाव में आदिवासी जिले खरगोन और धार में भाजपा का प्रदर्शन काफी खराब था। खरगोन जिले में भाजपा अपना खाता भी नहीं खोल पाई थी, जबकि धार जिले में सात विधानसभा सीटों में से सिर्फ धार विधानसभा क्षेत्र की सीट भाजपा जीत पाई थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक विधायकों के साथ भाजपा में शामिल होने के बाद हुए उपचुनाव में बदनावर सीट से कांग्रेस छोड़ भाजपा में अाए जयवर्धन सिंह दत्तीगांव चुनाव जीते थे।