Home राज्यों से अब ऐप से पता चलेगा ग्लूकोमा है या नहीं, मोबाइल में अलग...

अब ऐप से पता चलेगा ग्लूकोमा है या नहीं, मोबाइल में अलग से लगेगा कैमरा; जानिए कैसे करेगा काम

3

 पटना
 
 अब डॉक्टर ही नहीं ऐप भी बताएगा कि आपको ग्लूकोमा है या नहीं। इसको लेकर भागलपुर ट्रिपल आईटी एक ऐप तैयार कर रहा है, जो आपके मोबाइल में होगा। मोबाइल में एक कैमरा के माध्यम से आंख की फोटो खींचकर यह जानकारी दे देगा। अभी गलूकोमा की जांच डॉक्टर करते हैं और इसके लिए मरीज को कम से कम तीन से चार हजार रुपये खर्च करने होते हैं। जल्द ही मरीजों को एक और सुविधा मिल जाएगी, जिससे ग्लूकोमा की जांच की जा सकेगी। ट्रिपल आईटी द्वारा तैयार किए जाने वाले ऐप को स्मार्टफोन में डाउनलोड करना होगा। इसके माध्यम से मोबाइल में एक सॉफ्टवेयर डाला जाएगा।

इसके लिए निर्धारित स्पेसिफिकेशन वाले मोबाइल की आवश्यकता होगी। इसमें फंडस कैमरा लगाना होगा। इस कैमरा से रेटिना का फोटो खिंचेगा और उससे जो इमेज  निकलेगा उसे मोबाइल में डाला गया सॉफ्टवेयर एनालिसिस करेगा। इस एनालिसिस के बाद वह बता देगा कि व्यक्ति को ग्लूकोमा है कि नहीं। इतना ही नहीं यदि ग्लूकोमा होने वाला होगा या शुरुआती स्तर पर हो तब भी यह जानकारी दे देगा।

अभी मशीन में लगे कैमरा से (फंडस) से डॉक्टर खुद इमेज को देखते हैं और बताते हैं कि व्यक्ति को ग्लूकोमा है कि नहीं। ट्रिपल आईटी के डा. चंदन झा ने बताया कि डॉक्टर्स के फीचर्स को लेकर मशीन में फिट कर रहे हैं। जो आंखों के फोटो को ऑटोमेटिक एनालिसिस करेगा। फिलहाल इसमें 90 फीसदी सफलता मिली है। इसपर अभी और काम किया जा रहा है। बाद में इसपर भी काम किया जायेगा कि ग्लूकोमा कितना फीसदी है।

काफी कम खर्च पर होगा उपलब्ध
जानकारी हो कि ग्लूकोमा की जांच को लेकर मिलने वाले मशीन पर करीब 15 लाख खर्च होंगे। लेकिन निर्धारित मोबाइल हो तो कैमरा पर मात्र 25 हजार रुपये खर्च होंगे और उससे आसानी से जांच हो सकेगी।

ये होंगे लाभ
– कम खर्च में हो जाएगी लोगों की जांच
– डॉक्टर्स पर जांच का दबाव कम होगा
– गांव-गांव में आसानी से जांच हो जाएगी  
– जिसे इसकी जानकारी होगी, वह तत्काल कार्रवाई कर लेगा
– कभी भी कहीं भी ले जाया जा सकेगा

इस बाबत भागलपुर के ट्रिपल आईटी के पूर्व निदेशक डा. अरविंद चौबे का कहना है कि संस्थान में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित ऑटोमेटेड ग्लूकोमा डिटेक्शन के तकनीक पर काम किया जा रहा है। इससे गांव-गांव में आसानी से और कम खर्च पर लोगों की आंखों की जांच की जा सकेगी। बड़ी संख्या में लोगों की आंखों की रोशनी बचाई जा सकेगी।