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इंदिरा गांधी ने सबसे ज्यादा झेले अविश्वास प्रस्ताव, हर बार बचा ली सरकार; मोरारजी देसाई और अटल खा गए थे गच्चा

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 नई दिल्ली
आम चुनाव को एक साल से कम का वक्त रह गया है और लोकसभा में मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जा रहा है। बुधवार को लोकसभा में कांग्रेस द्वारा लाया गया अविश्वास प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया। चुनाव से एक साल पहले सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव का सामना करने वाले मोदी दूसरे प्रधानमंत्री बन गए हैं। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इस तरह के 6 अविश्वास प्रस्ताव का सामना कर चुकी हैं। बता दें कि अविश्वास प्रस्ताव के बाद केवल मोरारजी देसाई की सरकार गिरी थी। वहीं विश्वास मत के दौरान तीन बार सरकार गिर चुकी है।

कब-कब आया ऐसा अविश्वास प्रस्ताव
पहली बार इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ अगस्त 1966 में एचएन बहुगुणा अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए थे। इसके बाद नवंबर 1966 में उमाशंकर त्रिवेदी ने दोबारा नो कॉन्फिडेंस मोशन पेश कर दिया। 1970 में  मधु लिमाये ने इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव रखा था। इसके बाद 1979 में मोरारजी देसाई की सरकार के खिलाफ वाईबी चव्हाण अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए। 2003 में अटल सरकार के खिलाफ सोनिया गांधी की अगुवाई में विपक्ष ने प्रस्ताव पेश किया था। पीएम मोदी के पिछले कार्यकाल में भी जब एक साल बचा था तब विपक्ष ने लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव रखा था। इसे श्रीनिवास केसिनेनी ने पेश किया था। 1979 में जब मोरारजी देसाई सरकार के खिलाफ सदन में अविश्वास प्रस्ताव पेश हुआ तब सरकार का तीन साल का कार्यकाल बचा हुआ था लेकिन यह सरकार पहले ही गिर गई। इन 6 अविश्वास प्रस्तावों में से पांच मानसून सत्र में ही पेश हुए थे। अब इस बार कंग्रेस नेता गौरव गोगोई ने अविश्वास प्रस्ताव पेश कर दिया है जिसपर चर्चा होनी है। इंदिरा गांधी के खिलाफ 12 और बार अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था।

संसदीय आंकड़ों के मुताबिक अब तक देश की सरकारों के खिलाफ 27 बार अविश्वास प्रस्ताव लाया जा चुका है। वहीं गौरव गोगोई की तरफ से पेश किया गया  प्रस्ताव 28वां है। नियम के मुताबिक स्पीकर को 10 दिन के भीतर अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा करवानी है। खास बात यह रही है कि मोरारजी देसाई की जनता पार्टी की सरकार को छोड़ दें तो सभी सरकारें अविश्वास प्रस्ताव का सामना सफलता से कर गई हैं। मोरारजी देसाई ने सदन में चर्चा के दौरान ही इस्तीफा दे दिया था।

क्या है विश्वास मत और अविश्वास प्रस्ताव में अंतर
विश्वास मत और अविश्वास प्रस्ताव में बड़ा अंतर है। दरअसल अविश्वास प्रस्ताव विपक्ष द्वारा लाया जाता है जबकि विश्वास मत मौजूदा सरकार लाती है। अगर स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव मंजूर करते हैं और फिर सत्तापक्ष बहुमत साबित नहीं कर पाया तो सरकार गिर जाती है। वहीं सरकार जब विश्वास प्रस्ताव लाती है तो इकसका पारित होना जरूरी होता है नहीं तो सरकार गिर जाती है। दो स्थितियों में सरकार विश्वास मत लाती है। पहला सरकार गठन के बाद बहुमत परीक्षण के लिए और दूसरा राष्ट्रपति या फिर राज्यपाल के कहने पर। अगर किसी सरकार के घटक दल टूटने लगते हैं तो राज्यपाल या राष्ट्रपति विश्वास मत हासिल करने को कह सकते हैं। इसे फ्लोर टेस्ट भी कहा जाता है। अविश्वास प्रस्ताव एक बार लाए जाने के छह महीने बाद दोबारा लाया जा सकता है।

विश्वास मत से अलग है अविश्वास प्रस्ताव
बता दें कि विश्वास मत और अविश्वास प्रस्ताव में फर्क है। विश्वास मत के दौरान तीन सरकारें गिर चुकी हैं। 1990 में वीपी सिंह की सरकार, 1997 में एचडी देवगौड़ा और 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार विश्वास मत हासिल ना कर पाने की वजह से गिर गई। 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव सोनिया गांधी ने रखा था। सदन में तीखी बहस हुई थी हालांकि वाजपेयी सरकार बच गई थी। एक साल बाद चुनाव हुए और बीजेपी की हार हुई। 2018 में जब मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया तो सरकार ने 325-126 से इसे जीत लिया। इस बार भी लोकसभा में नंबर्स एनडीए के पक्ष में हैं। एनडीए के 330 सदस्य हैं जबकि INDIA के पास केवल 141 सांसद।