नईदिल्ली
संसद के मानसून सत्र का पांचवां दिन भी हंगामेदार रहा। इस बीच, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई द्वारा सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को चर्चा के लिए स्वीकृति दे दी है। कांग्रेस के अलावा तेलंगाना के सीएम केसीआर की पार्टी बीआरएस की ओर से भी मणिपुर मुद्दे को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया गया है। बीआरएस की तरफ से सांसद नामा नागेश्वर राव ने ये नोटिस लोकसभा महासचिव को सौंपा है।
आठ दिन बाद केसीआर का रुख बदला?
आठ दिन पहले केसीआर की पार्टी बीआरएस कांग्रेस की अगुवाई वाले गठबंधन INDIA से परहेज कर रही थी, वही अब कांग्रेस के साथ संसद में मोदी सरकार के खिलाफ लड़ाई में शामिल हो गई है। इसे संयोग या राजनीतिक प्रयोग कहा जा सकता है। पांच साल पहले भी जब जुलाई 2018 में मोदी सरकार के खिलाफ पहला अविश्वास प्रस्ताव आया था, तब चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी के सांसद ने उसे पेश किया था और केसीआर की पार्टी के सभी सांसदों ने अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग से खुद को बाहर रखकर मोदी सरकार का बचाव किया था।
तब की टीडीपी-टीआरएस और अब की TDP-BRS
उस वक्त कांग्रेस के साथ टीडीपी खड़ी थी। इस बार कांग्रेस के साथ केसीआर की पार्टी खड़ी है। तब टीडीपी कांग्रेस के साथ गठबंधन करने को बेकरार थी। इस बार उसकी नजदीकियां बीजेपी के साथ बढ़ती दिख रही हैं। फिलहाल टीडीपी को एनडीए में शामिल होने का न्योता नहीं मिला है। उसी तरह केसीआर ने भी अभी तक अपने इरादे नहीं जताए हैं कि वह INDIA गठबंधन में रहेंगे या नहीं?
कर्नाटक में भी बदल रहे समीकरण
दक्षिणी राज्य कर्नाटक में भी सियासी समीकरण तेजी से बदलने लगे हैं। 18 जुलाई तक पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा बीजेपी से एनडीए में शामिल होने का न्योता मिलने का इंतजार कर रहे थे, अब वही देवगौड़ा अगले साल के लोकसभा चुनाव में अकेले दौड़ने की बात कर रहे हैं। हालांकि, उनके ही घर में उकी बात को काटा जा रहा है। उनके पूर्व मुख्यमंत्री बेटे एचडी कुमारास्वामी लोकसभा में बीजेपी के साथ चलने के संकेत दे रहे हैं।
अगले साल तक क्या होगा दक्षिण का दृश्य
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि अगले साल चुनावी वर्ष में दक्षिण का राजनीतिक दृश्य बदल सकता है। कर्नाटक के हालिया विधानसभा चुनावों में बीजेपी और जेडीएस दोनों की करारी हार हुई है, इसलिए दोनों दल अपनी जमीन बचाने के लिए संभवत; किसी समझौते पर पहुंच सकते हैं। ऐसा पहली बार नहीं होगा जब जेडीएस और बीजेपी ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा हो या सरकार चलाई हो। इससे पहले दोनों का गठबंधन हो चुका है और मौजूदा समय में दोनों को एक-दूसरे की जरूरत है।
हालांकि, तेलंगाना में इस बात की संभावना कम ही है कि केसीआर किसी भी दल से गठबंधन करेंगे लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अगले साल केंद्र में गैर बीजेपी सरकार बनाने में अगर विपक्षी दलों को उनके मदद की दरकार हुई तो वह उसे निराश नहीं करेंगे। बता दें कि तेलंगाना में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं। तमिलनाडु में पहले से ही कांग्रेस और डीएमके गठबंधन में हैं, जबकि बीजेपी के साथ एआईएडीएमके का गठबंधन है। केरल में कांग्रेस की अगुवाई में यूडीएफ गठबंधन है जो वाम दलों के गठबंधन एलडीएफ संग दोस्ताना लड़ाई चाह रही है।