'द लांसेट' में पब्लिश हुई रिसर्च में सामने आया कि आने वाले 30 साल में किसी भी देश में डायबिटीज रेट कम नहीं होने वाला। यूनाइटेड नेशन्स का अनुमान है कि 2050 तक डायबिटीज के मरीजों की संख्या130 करोड़ हो जाएगी। यानी हर 7 में से एक व्यक्ति को डायबिटीज होगी। रिसर्च में ये भी कहा गया कि कोविड-19 महामारी विकसित देशों की तुलना में उन जगहों पर ज्यादा फैली, जहां लोगों को को इलाज और पोषण पर्याप्त मात्र में नहीं मिलता है। ऐसे इलाकों में डायबिटिक मरीजों की मृत्यु दर नॉन-डायबिटिक लोगों के मुकाबले दोगुनी ज्यादा है।
कोविड-19 इंसुलिन बनाने वाले बीटा टिश्यू को संक्रमित करता है
लांसेट की रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना वायरस शरीर में ग्लूकोज को मैनेज करने वाले टिश्यू और अंगों- पेंक्रियाज, छोटी आंत, लिवर और किडनी की कार्यक्षमता पर बुरा असर डालता है। ये सीधे पेंक्रियाज में मौजूद इंसुलिन बनाने वाली बीटा कोशिकाओं को संक्रमित करता है। बीटा कोशिकाओं के डैमेज होने पर मरीजों में इंसुलिन बनने की कैपेसिटी कम हो जाती है। ऐसे में जो स्वस्थ हैं उनमें भी नई डायबिटीज हो जाता है।
ज्यादा मोटापे की वजह से भी बढ़ रहे हैं डायबिटिक
रिसर्च के मुताबिक, मोटापे की वजह से भी डायबिटीज के मरीज बढ़ रहे हैं। इसमें ये भी कहा गया कि क्योंकि मरीजों की संख्या बढ़ रही है इसलिए दुनियाभर में बीमारी और मृत्यु दर भी बढ़ रही है।
डायबिटीज मरीजों की प्यास बढ़ जाती है
डायबिटीज में मरीजों का ब्लड शुगर लेवल जब ज्यादा हो जाता है। इसके मरीज जल्दी थक जाते हैं। इसका कारण उनके शरीर में एनर्जी की कमी होना है। डायबिटीज के मरीजों को बार-बार पेशाब आती है। ऐसा इसलिए क्योंकि जब आपका ब्लड शुगर लेवल ज्यादा होता है, तब किडनी ब्लड से ज्यादा शुगर फिल्टर करने की कोशिश करती है। ज्यादा पेशाब के कारण शरीर को ज्यादा पानी की जरूरत पड़ती है। इसलिए मरीजों की प्यास बढ़ जाती है। कई मामलों में इससे लोगों में पानी की कमी होने लगती है।
इसलिए डायबिटिक लोगों को संक्रमण का खतरा ज्यादा
डायबिटीज के रोगियों में इम्यून सिस्टम की कोशिकाओं (लिम्फोसाइट्स, न्यूट्रोफिल्स) की कार्य क्षमता कम हो जाती है। इस वजह से शरीर में एंटीबॉडीज कम बनती हैं। बीमारी से लड़ने की ताकत कम होने के कारण ये बाहरी चीजों (वायरस, बैक्टीरिया) को खत्म नहीं कर पाती नतीजा जान का जोखिम बढ़ता जाता है।
भारत में 11 फीसदी आबादी चपेट में
इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च के एक शोध में सामने आया कि भारत में 11% आबादी यानी 7.7 करोड़ लोग डायबिटीज से पीड़ित हैं। इससे कहीं ज्यादा चिंताजनक ये है कि 15% से ज्यादा प्री-डायबिटीक है। यानी इन लोगों को भविष्य में डायबिटीज हो सकता है। अगर लोग जागरूक नहीं हुए तो भारत की करीब एक चौथाई से ज्यादा आबादी डायबिटिक हो सकती है। प्री-डायबिटीज वह अवस्था होती है, जब व्यक्ति का शरीर ग्लूकोज को आसानी से ऊर्जा में नहीं बदल पाता। इससे शुगर का स्तर बढ़ जाता है, लेकिन यह इतना नहीं होता कि इसे डायबिटीज कहा जाए। हालांकि यह स्थिति आगे चलकर बीमारी में बदल जाती है।
डायबिटीज मरीजों की आबादी में भारत दूसरे नंबर पर
कउटफ के मुताबिक, दुनिया में डायबिटीज मरीजों की आबादी में भारत दूसरे नंबर पर है। यहां हर छठे व्यक्ति को यह बीमारी है। पिछले 30 सालों में देश में डायबिटीज के मरीजों की संख्या 150% बढ़ी है। टाइप-1 डायबिटीज से पीड़ित दुनिया का हर पांचवा बच्चा या किशोर भारतीय है। इसके अलावा युवा कम उम्र में ही टाइप-2 डायबिटीज के मरीज बनते जा रहे हैं। यह शहरी और ग्रामीण इलाकों के 25 से 34 साल के लोगों में ज्यादा देखा जा रहा है।