नईदिल्ली
नारकोटिक्स ड्रग्स ऐंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस मामले में एक आरोपी की जमानत को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि किसी निर्णय पर पहुंचे लंबे समय तक किसी आरोपी को सलाखों के पीछे रखना उसके मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। कोर्ट ने कहा कि केवल इसलिए किसी को लंबे समय तक जेल में नहीं रखा जा सकता कि कोर्ट को संतोष नहीं हुआ है कि आरोपी निर्दोष है।
जस्टिस सूर्यकांत और दीपांकर दत्ता ने कहा कि एनडीपीएस ऐक्ट के तहत आने वाले प्रतिबंध किसी के स्वतंत्र के अधिकार पर भारी नहीं हैं। ऐस में यह अहम हो जाता है कि कोई शख्स कितने दिन से कैद है। बेंच ने कहा, अगर किसी को ज्यादा समय तक बिना किसी फैसले के कैद रखा जाता है तो यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्ल्ंगन है। एनडीपीएस ऐक्ट के सेक्शन 37 (1)(b)(II) के तहत प्रावधानों से मौलिक अधिकार अहम हैं।
संविधान का अनुच्छेद 21 जीने और संवतंत्रता का अधिकार देता है। ऐसे में राइट टु स्पीडी ट्रायल को आर्टिकल 21 के विस्तार के रूप में देखा जाता है। बता दें कि एनडीपीएस कानून नशीले पदार्थों की तस्करी से जुड़ा है। इस कानून के तहत दोषी पाए जाने वाले को 1 साल से 20 साल तक के कठोर कारावास की सजा दी जा सकती है। इसके साथ ही एक लाख तक का जुर्माना हो सकता है।
इसमें यह भी कहा गया है कि जब तक अभियोजक को आरोपी की याचिका का विरोध करने का मौका नहीं दिया जाता और कोर्ट सहमत नहीं होता कि आरोपी निर्दोष हो सकता है, उसको जमानत नहीं दी जा सकती।