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कार्यस्थलों पर होनेवाली यौन हिंसा पर त्वरित कार्यवाही करने हेतु कार्यशाला एवं जागरूकता कार्यक्रम करने का निर्देश

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रायपुर

माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा सिविल अपील क्रमांक 2482/2014 आरलियानों फनार्डीज वि0 गोवा राज्य व अन्य में पारित निर्णय 12.05.2023 में दिये निदेर्शों के परिपालन में  जिला विधिक सेवा प्राधिकरण रायपुर वैकल्पिक विवाद समाधान केन्द्र में कार्यस्थलों पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीडन (रोकथाम निषेध और निवारण) अधिनिमय 2013 पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता माननीय श्री संतोष शर्मा, जिला एवं सत्र न्यायाधीश, रायपर द्वारा की गई।

कार्यक्रम में व्याख्यान लवकेश प्रताप सिंह बघेल, अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश ( प्रथम एफ.टी.एस.सी. पॉक्सो) रायपुर द्वारा दिया गया। जिनके द्वारा अपने वक्तव्य में बताया गया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 एवं 15 में समानता और अनुच्छेद 21 में प्राण एवं गरिमा से जीवन व्यती करने के मूलभूत अधिकारों एवं मुक्त सुरक्षित वातावरण के अधिकार की बात कही गई है। महिलाओं की सुरक्षा के लिये समय समय पर विभिन्न कानून बनाये गये। इसके बावजूद भी महिलाओं की सुरक्षा की कमी को दृष्टिगत रखते हुये घरेलु हिंसा अधिनियम, लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 बनाये गये, जिसमें अपराधी को दंडित किये जाने की व्यवस्था की गई किंतु समय की गतिशीलता के साथ यह महसूस किया जाने लगा कि महिलाएं घर से निकलकर अपने कार्यक्षेत्र पर जाने लगी है और कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ उत्पीडन की अनेक घटनाएं होती रही है, जिसके संबंध में कोई स्पष्ट कानून नहीं बना था और इस कमी को माननीय उच्चतम न्यायालय ने विशाखा वि0 स्टेट आफ राजस्थान वर्ष 1997 में महसूस किया और कार्यस्थल पर महिलाओं के उत्पीडन की रोकथाम के लिये विभिन्न दिशा-निर्देश जारी किये और उसी दिशा निर्देश के परिप्रेक्ष्य में कानून की दृष्टिगत रखते हुये वर्ष 2013 में केन्द्र सरकार ने कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीडन (रोकथाम निषेध और निवारण) अधिनियम 2013 पारित किया जो 9 दिसंबर 2013 को प्रभाव में आया। जिसके अंतर्गत 1- किसी स्त्री को उसकी इच्छा के खिलाफ छूना या छूने की कोशिश करना 2- अनुचित लाभ देकर यौन संबंध बनाने की मांग करना 3 अश्लील बातें करना 4 अश्लील तस्वीरें वीडियो दिखाना या भेजना 5-अन्य यौन कार्य जो बातचीत लिखकर या छूकर किये गये हो 6-लैंगिक उत्पीडन में वचन देना, धमकी देना, आपराधिक एवं शत्रुतापूर्ण कार्य वातावरण सृजि करना, अपमानजनक आचरण करना को लैंगिक उत्पीडन माना गया है।

इस अधिनियम में यह व्यवस्था दी गई है कि जिन संस्थाओं में 10 या 10 से अधिक लोग काम करते हैं, वहां आंतरिक परिवाद समिति का गठन किया जावेगा और जहां 10 से कम लोग काम करते हैं और परिवार किसी नियोजक के विरुद्ध है, वहां कलेक्टर स्थानीय परिवार समिति का गठन करेगा और यदि संस्था की कई यूनिटे है तो सभी कार्यालयों में समिति गठित की जायेगी। कमेटी में वरिष्ठ स्तर की महिला पीठासीन अधिकारी होगी, दो सदस्य कर्मचारियों में से होंगे और एक सदस्य गैर सरकारी संगठन का होगा, जो महिलाओं की समस्याओं से परिचित हो। उस संस्थान में आंतरिक शिकायत समिति का गठन किया जायेगा और किसी महिला पीड़िता द्वारा शिकायत करने पर शिकायत घटना के तीन माह के भीतर दर्ज करानी हो और समिति को लगता है उक्त समय सीमा में पीड़िता शिकायत करने में असमर्थ है तो तीन माह का समय सीमा और चढ़ाई जा सकती है। यदि नियोक्ता अधिनिमय के प्रावधानों को पूरा करने में असफल रहता है. तो उसे 50,000/- रुपए से अधिक का अर्थदंड भरना पड़ेगा। समिति को शिकायत प्राप्त होने पर तीन महिने के अंदर शिकायत का निपटारा करना होगा। पीडित महिला के चाहने पर काउंसलेशन के माध्यम से उक्त शिकायत को सुलझाया जा सकता है और समाधान नहीं। चाहने पर उसकी जांच प्रक्रिया अनुसार की जायेगी और जांच होने पर आरोपी के दोषी पाने पर उसके विरूद्ध लिखित मामले, चेतावनी, पदोन्नति प्रमोशन या वेतन वृद्धि रोकना या नौकरी। से निकाल देने का प्रावधान है। उक्त कानून में यह भी व्यवस्था दी गई है कि यदि शिकायत झूठी पाई तो महिला के विरूद्ध भी वहीं कार्यवाही होगी जो आरोपी के विरूद्ध की जा सकती है। आंतरिक जांच समिति जांच पूरा होने की तारीख से 10 दिवस के भीतर अपनी रिपोर्ट नियोजक को प्रेषित करेगी और उसकी प्रति पक्षकारों को उपलब्ध करायेगी। प्रत्यर्थी के विरूद्ध अभिकथन साबित हो गया है तो उस पर कार्यवाही की सिफारिश कर सकती है और नियोजक सिफारिश की प्राप्ति के 60 दिवस के भीतर उस पर कार्यवाही करेगा तथा व्यथित व्यक्ति उक्त आदेश के विरूद्ध 90 दिवस के अंदर सेवा नियमों के अनुसार न्यायालय या अधिकरण में अपील कर सकेगा। उक्त अधिनियम में यह व्यवस्था दी गई है कि सूचना के अधिकार में किसी बात के होते हुये भी परिवाद की अंतर्वस्तुओं, व्यथित महिला, प्रत्यर्थी और साक्षियों की पहचान और पते से संबंधित जानकारी तथा सिफारिशें एवं नियोजक द्वारा की गई कार्यवाह के किसी भी प्रकार से प्रेस और मीडिया को या सार्वजनिक नहीं की जायेगी और यदि जानकारी सार्वजनिक की जाती है और नियम का उल्लंघन किया जाता है तो वह व्यक्ति सेवा नियमों के उपबंधों के अनुसार शास्ति के लिये दायी होगा।

इस अधिनियम को बनाये जाने के बावजूद भी उक्त अधिनियम का पूर्णरूप से पालन नहीं हुआ और संस्थाओं में समितियों का गठन नहीं किया गया तब माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने आरलियानो फनार्डीज वि0 गोवा राज्य व अन्य में पारित निर्णय दिनांक 12.05.2023 में यह दिशा निर्देश जारी किया कि नियमत जो समिति गठित करेगा, उनके सदस्यों का ई-मेल आई. डी. एवं कान्टेक्ट नंबर वेबसाईट पर प्रदर्शित किया जावेगा तथा संस्थान में भी उक्त जानकारी। उपलब्ध करायी जायेगी, ताकि संबंधित कर्मचारी को इस बात की जानकारी हो सके कि उसे किसके पास अपनी शिकायत लेकर जाना और वह आनलाईन भी शिकायत कर सकता है। माननीय श्री संतोष शर्मा, जिला एवं सत्र न्यायाधीश / अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकरण रायपुर द्वारा श्री प्रवीण मिश्रा, सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण रायपुर को माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के अनुपालन में यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया कि संपूर्ण रायपुर जिले एवं गरियाबंद जिले में उक्त विषय पर लगातार जागरूकता शिविर एवं कार्यशाला करें। हर शासकीय एवं अर्द्धशासकीय और निजी संस्थानों में प्राधिकरण के माध्यम से उक्त कानून का किस प्रकार क्रियान्व्यन किया जाना है, महिलाएं कैसे इस कानून का लाभ उठा सकती है, किस प्रकार कमेटी का गठन किया जाना है, हर वर्ग तक जानकारी पहुंचाएंगे।