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कब होगी चंद्रयान 3 की असली परीक्षा? चंद्रयान-2 के वक्त क्या हुई थी गड़बड़ी

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नई दिल्ली
तीन साल पहले चंद्रयान-2 की विफलता के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने लगातार बदलाव कर चंद्रयान 3 को लॉन्च किया। इस अथक प्रयास के पहले चरण की सफलता शुक्रवार को मिली। चंद्रयान-3 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के लॉन्च पैड से सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया। लेकिन असली सफलता के लिए अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना बाकी है। यदि चंद्रयान-3 का लैंडर विक्रम चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक चंद्रमा की सतह को छूता है और फिर रोवर प्रज्ञान को सफलतापूर्वक लैंड कराता है, तब भारतीय अंतरिक्ष अभियानों के इतिहास में एक नया आयाम लिखा जाएगा।

इस साल चंद्रमा पर कुल छह अभियान हो रहे हैं। चंद्रयान-3 उस लिस्ट में पहले नंबर पर है। चंद्रयान-2 को 22 जुलाई, 2019 को श्रीहरिकोटा से 'जीएसएलवी मार्क 3' यानी 'बाहुबली' रॉकेट द्वारा लॉन्च किया गया था। इसके भी तीन हिस्से थे- ऑर्बिटर, लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान। विक्रम को 6 सितंबर की देर रात प्रज्ञान को लेकर 'सॉफ्ट लैंडिंग' करनी थी। लैंडिंग के बाद रोवर प्रज्ञान को बाहर आना था। चंद्रमा पर उतरने से तीन मिनट पहले विक्रम से इसरो का संपर्क टूट गया। कई अंतरिक्ष वैज्ञानिकों और अंतरिक्ष इंजीनियरों का मानना है कि विक्रम लैंडिंग के दौरान अपनी गति को नियंत्रित किए बिना चंद्रमा की सतह से टकराया। उस अनुभव से इसरो वैज्ञानिक इस बार अधिक सावधान थे। प्रक्षेपण बिना किसी रुकावट के संपन्न हुआ। इस बार लैंडिंग का इंतजार है।

क्या काम करेगा चंद्रयान-3?
इसरो के मुताबिक, करीब 40 दिन बाद चंद्रयान-3 का सौर ऊर्जा से संचालित लैंडर 23 या 24 अगस्त को चंद्रमा की सतह पर उतर सकता है। वहां से सौर ऊर्जा से चलने वाला रोवर निकलेगा और चांद की धरती को छूएगा। प्रज्ञान रोवर चंद्रमा की मिट्टी की प्रकृति, विभिन्न खनिजों की उपस्थिति पर डेटा एकत्र करेगा। चंद्रमा पर उतरने का चरण सूर्योदय के समय होगा। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सूर्यास्त के दो सप्ताह बाद यह काम समाप्त हो जाएगा। चंद्रयान-3 चंद्रमा की कक्षा में पहुंचेगा और लैंडिंग से पहले ऑर्बिटर से जुड़ जाएगा।

कैसे हुआ चंद्रयान-3 का प्रक्षेपण?
शुक्रवार दोपहर 2.35 बजे चंद्रयान-3 की रवानगी से 20 मिनट पहले इसरो ने जानकारी दी कि लॉन्चिंग के लिए मौसम अनुकूल है। इसलिए लॉन्चिंग पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक ही होगी। इसके साथ ही देशवासियों को चंद्रयान के प्रक्षेपण और अंतरिक्ष में यात्रा का 'लाइव प्रसारण' देखने की सुविधा देने के लिए एक यूट्यूब चैनल का लिंक भी जारी किया गया।

चंद्रयान-2 मिशन का क्या हुआ?
7 जुलाई, 2019 को चंद्रयान-2 लैंडर विक्रम ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास 'सिम्पेलियस एन' और 'मैंगिनस सी' नामक दो गड्ढों के बीच उतरने का प्रयास किया लेकिन यह सफल नहीं हो सका। तीन महीने तक अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी नासा विक्रम के अवशेषों की खोज करती रही। लेकिन वे इसकी किसी भी तरह से पहचान नहीं कर सके। आखिरकार, नासा ने 'लूनर रिकॉनिसेंस ऑर्बिटर' (एलआरओ) द्वारा ली गई एक तस्वीर साझा  की। उस तस्वीर को देखकर चेन्नई के एक मैकेनिकल इंजीनियर ने विक्रम के मलबे की पहचान की। हैरानी की बात ये थी कि लैंडर और रोवर के नष्ट होने के बावजूद इसरो का ऑर्बिटर अभी भी चंद्रमा की परिक्रमा कर रहा है। चंद्रयान-3 उस ऑर्बिटर का उपयोग करेगा।

भारत का चंद्रमा पर अभियान क्यों?
सवाल उठ सकता है कि भारत जैसे देश को चांद पर रॉकेट भेजने से क्या फायदा? गरीबी, प्राकृतिक आपदाओं जैसी कई समस्याओं से जूझ रहा भारत क्या चांद पर जाने को तैयार है? इसके जवाब में कहा जा सकता है कि अंतरिक्ष यात्रा भारतीयों के लिए राष्ट्रीय गौरव का स्थान है। 2014 में मंगल मिशन के दौरान, बच्चों को इसे देखने की अनुमति देने के लिए स्कूल के शेड्यूल में बदलाव किया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उस दिन बेंगलुरु में मंगल मिशन कंट्रोल रूम में मौजूद थे।

3 अप्रैल, 1984 को भारतीय अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा ने रूसी अंतरिक्ष यान से अंतरिक्ष में उड़ान भरकर एक मिसाल कायम की। वह पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री थे। चार दशकों के बाद, इसरो का लक्ष्य भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को स्वदेश निर्मित अंतरिक्ष यान से अंतरिक्ष में भेजना है। जिसका नाम दिया गया है 'गगनयान मिशन'। इसरो इस योजना को 2025 तक सफल बनाना चाहता है. इसके अलावा, भारत ने नासा के साथ संयुक्त रूप से इसरो के अंतरिक्ष मिशन के लिए 'आर्टेमिस समझौते' पर हस्ताक्षर किए हैं। सूत्रों के मुताबिक, कुछ ही सालों में अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी नासा इसरो के साथ मंगल, शुक्र और चंद्रमा के लिए एक संयुक्त मिशन लॉन्च करेगी।