नई दिल्ली
मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव अब कुछ ही महीने दूर हैं। इस बीच भाजपा ने संगठन से लेकर सरकार तक के पेच कसने शुरू कर दिए हैं। भाजपा ने जीत के लिए राज्यवार रणनीति तैयार की है। इसका मकसद यह है कि हर राज्य की स्थिति के हिसाब से मुद्दों और चेहरों को चुना जाए। पार्टी ने इन राज्यों के लिए प्रभारी नियुक्त कर दिए हैं और अब हर स्टेट के हिसाब से मुद्दे चुने जा रहे हैं। किन चेहरों को आगे किया जाए और कौन नेपथ्य में रहकर काम करेंगे, इस पर मंथन चल रहा है। अमित शाह और जेपी नड्डा समेत तमाम वरिष्ठ नेता रणनीति तैयार कर रहे हैं।
इसी के तहत मध्य प्रदेश में फैसला लिया गया है कि शिवराज सिंह चौहान भी चेहरा बनेंगे। उन्हें पीएम नरेंद्र मोदी के साथ ही जगह दी जाएगी और पोस्टर, बैनर से लेकर रैलियों तक में उनके नाम का खूब जिक्र होगा। यही नहीं प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के बारे में भी केंद्रीय नेतृत्व को पॉजिटिव रिपोर्ट मिली है। इसलिए वह भी जस के तस बने रहेंगे। भाजपा को लगता है कि मध्य प्रदेश में शिवराज सरकार भले ही 20 साल की एंटी इन्कमबैंसी का सामना करेगी, लेकिन मामा जितना लोकप्रिय नेता राज्य में दूसरा नहीं है। इसके अलावा हाल के सालों में बुलडोजर ऐक्शन जैसी चीजों से उन्होंने कानून व्यवस्था को लेकर भी छवि मजबूत की है।
वसुंधरा को चाहकर भी दूर क्यों नहीं कर पाई भाजपा
इसलिए भाजपा शिवराज सिंह चौहान के काम और लोकप्रियता के साथ ही पीएम मोदी के जादू पर भी मध्य प्रदेश में भरोसा करेगी। वहीं राजस्थान को लेकर भाजपा पसोपेश की स्थिति में है। केंद्रीय नेतृत्व वसुंधरा राजे की बजाय कोई और फेस चाहता था, लेकिन किसी नेता को उतना नाम नहीं बन पाया है। ऐसे में भाजपा वसुंधरा राजे को ना तो प्रोजेक्ट करेगी और ना ही उन्हें दूर रखेगी। दरअसल वसुंधरा राजे के समर्थन में करीब दो दर्जन मौजूदा विधायक हैं। वह आज भी कई इलाकों में भाजपा की पहचान बनी हुई हैं। ऐसे में उन्हें नजरअंदाज करने या चुनाव से ठीक पहले उनसे दूरी रखने से भाजपा बच रही है।
छत्तीसगढ़ में रमन किनारे, PM मोदी के ही सहारे
छत्तीसगढ़ की बात करें तो यहां भाजपा पीएम मोदी के नाम पर ही चुनाव में उतरेगी। पूर्व सीएम रमन सिंह को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर भाजपा पहले ही उन्हें राज्य की राजनीति से दूर रखने का संकेत दे चुकी थी। इसके अलावा भाजपा मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में आदिवासी वोटरों को लुभाने का प्रयास करेगी। यही नहीं बड़े पैमाने पर मौजूदा विधायकों के टिकट भी काटने की तैयारी है। पार्टी को लगता है कि इससे वह लोकल लेवल पर नाराजगी और ऐंटी इन्कम्बैंसी जैसे फैक्टरों का मुकाबला कर सकेगी। गुजरात में यह रणनीति सफल भी रही है। इन तीनों ही राज्यों के चुनाव को 2024 के लिए सेमीफाइनल माना जा रहा है।