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देश में फरवरी से चलेगी वंदे मेट्रो, पैसेंजर ट्रेनों का बनेगी विकल्प; जानें खासियतें

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नई दिल्ली

रेलवे बोर्ड का वंदे मेट्रो ट्रेन इस साल दिसंबर में चलाने का लक्ष्य था। लेकिन तकनीकी कारणों के कारण देश की पहली वंदे मेट्रो ट्रेनें फरवरी 2024 में पटरियों पर दौड़ सकेंगी। वंदे मेट्रो ट्रेनें भारतीय रेलवे की चर्चित सेमी हाई स्पीड वंदे भारत एक्सप्रेस का छोटा संस्करण है, जोकि मौजूदा तीन हजार पैसेंजर ट्रेनों को हटाकर चलाने की योजना है।

रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इसका डिजाइन इस माह पूरा कर लिया जाएगा। इसके पश्चात ट्रेन के कोच के आंतरिक-बाहरी डिजाइन बनाने का काम सितंबर में शुरू किया जाएगा। ट्रेन का ट्रॉयल जनवरी में शुरू कर दिया जाएगा। रेल संरक्षा आयुक्त (सीआरएस) से प्रमाण पत्र मिलने के बाद पहली वंदे मेट्रो कॉमर्शियल परिचालन फरवरी में शुरू हो जाएगा। अधिकारी ने बताया कि वंदे मेट्रो ट्रेन 100 किलोमीटर की दूरी के बीच प्रमुख शहरों के बीच चलाई जाएंगी। यह ट्रेनें दिनभर में चार से पांच फेरे लगाएंगी।

वंदे मेट्रो ट्रेन के दरवाजे ऑटोमैटिक खुलेंगे व बंद होंगे। इसमें वंदे भारत की तरह तमाम सुविधाएं उपलाब्ध होंगी। लेकिन टॉयलेट का प्रावधान नहीं होगा। वंदे मेट्रो की अधिकतम रफ्तार 130 से 160 किलोमीटर प्रतिघंटा होगी। लेकिन रेलवे सेक्शन निर्धारित गति से चलाई जाएंगी। पैसेंजर ट्रेनों की अपेक्षाकृत इनकी औसत रफ्तार अधिक होगी। जिससे दैनिक रेल यात्री कम समय में सफर पूरा कर सकेंगे। वंदे मेट्रो ट्रेनें आठ कोचों की होगी।

-दिल्ली मेट्रो की एयरपोर्ट एक्सप्रेस लाइन (एईएल) की गति हाल ही में 90 किमी प्रति घंटे से बढ़ाकर 100 किमी प्रति घंटे कर दी गई है।
-बेंगलुरु में नम्मा मेट्रो की औसत गति 80 किमी प्रति घंटा है।
-मुंबई मेट्रो ट्रेनों की गति हाल ही में 65 किमी प्रति घंटे से बढ़ाकर 80 किमी प्रति घंटे कर दी गई थी। -कोलकाता मेट्रो ट्रेनों की टॉप स्पीड 80 किमी प्रति घंटा है। हालाँकि, कोलकाता मेट्रो की कुछ लाइनों पर गति सीमा पर प्रतिबंध भी लागू है।

वंदे मेट्रो ट्रेन सेल्फ प्रेपेल्ड तकनीकी से चलती है
वर्तमान में दिल्ली, लखनऊ, मुरादाबाद, पटना, रांची, जयपुर, भोपाल, अहमदाबाद सहित देश के प्रमुख बड़े शहरों के बीच पैसेंजर ट्रेनें चल रही हैं। यह पैसेंजर ट्रेनें इंजन की सहायता से चलाई जाती है। पैसेंजर ट्रेनों के गति पकड़ने व रुकने में वक्त लगता है। इससे इनकी औसत रफ्तार कम हो जाती है। जबकि वंदे मेट्रो सेल्फ प्रेपेल्ड तकनीकी से चलती है। इसमें प्रत्येक तीन कोच के बीच चार मोटर होते हैं। इससे ट्रेनें तेज गति से चलती और रुकती है। जिससे इसकी औसत गति बढ़ जाती है।