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ध्वस्त होता लोकतंत्र आखिर बम-बंदूकों के साथ होने वाले चुनावों से क्या हो रहा हासिल

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बंगाल
बंगाल में पंचायत चुनाव के नतीजे आने के बाद भी हिंसा जारी रहने पर हैरानी नहीं, क्योंकि ऐसा होना इस राज्य का राजनीतिक चरित्र बन गया है। ध्यान रहे कि बंगाल में पिछले विधानसभा चुनाव के बाद भी भीषण हिंसा हुई थी। तब भी दर्जनों लोग मारे गए थे, लेकिन ममता सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा था। इस बार भी ऐसी ही स्थिति है।

बंगाल में पंचायत चुनाव के लिए नामांकन शुरू होते ही हिंसा और हत्याओं का सिलसिला कायम हो गया था, जो मतदान के दिन तक जारी रहा। आम तौर पर मतदान खत्म होते ही हिंसा का दौर समाप्त हो जाता है, लेकिन बंगाल अपवाद है। वहां नतीजे आने के बाद भी हिंसक गतिविधियां जारी रहती हैं और उनमें लोग मारे भी जाते हैं। चुनाव बाद हिंसा में अभी तक चार लोग मारे जा चुके हैं। इसकी भरी-पूरी आशंका है कि हिंसा और हत्या का यह दौर थमने वाला नहीं है।

बंगाल में राजनीतिक हिंसा की संस्कृति इतना विकृत रूप ले चुकी है कि विरोधी दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं पर ही हमले नहीं होते, उन मतदाताओं को भी निशाना बनाया जाता है, जिन पर यह संदेह होता है कि उन्होंने किसी विपक्षी दल को वोट दिया है। बंगाल में ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि न तो सत्तारूढ़ दल चुनावी हिंसा रोकने की कोई इच्छाशक्ति दिखाता है और न ही पुलिस। बंगाल पुलिस चुनावी हिंसा के समक्ष मूकदर्शक बनना ही पसंद करती है।

बंगाल में हर चुनाव हिंसा और भय के साये में होते हैं। चुनावों के दौरान विरोधी दलों के प्रत्याशियों और उनके समर्थकों को डराने-धमकाने के लिए जमकर बम-बंदूकों का इस्तेमाल होता है। ऐसे माहौल में होने वाले चुनाव लोकतंत्र को निरर्थक ही साबित करते हैं। चुनावों की पहली शर्त है कि वे स्वतंत्र और निष्पक्ष होने के साथ ऐसे वातावरण में हों, जिसमें न तो हिंसा की आशंका हो और न ही इसकी कि नतीजों के बाद जीतने या हारने वाले बदला लेने पर उतारू हो जाएंगे। बंगाल में चुनाव की इस बुनियादी शर्त का कोई मतलब नहीं रह गया है, क्योंकि वहां कोई भी चुनाव हिंसा और भय के साये के बगैर हो ही नहीं पाता।

क्या ऐसे माहौल में होने वाले चुनाव लोकतंत्र को कोई शक्ति प्रदान कर सकते हैं? वास्तव में आतंक के साये में होने वाले चुनाव और उनसे हासिल नतीजे लोकतंत्र का केवल उपहास ही नहीं उड़ाते, बल्कि उसे निरर्थक भी साबित करते हैं। पंचायती राज व्यवस्था के तहत पंचायत चुनाव इसलिए कराने शुरू किए गए थे, ताकि प्रशासनिक शक्तियों का विकेंद्रीकरण करने के साथ ग्रामीण विकास को बल दिया जा सके। बंगाल में जैसे घोर अराजक माहौल में पंचायत चुनाव हुए, उसे देखते हुए नीति-नियंताओं को इस पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है कि आखिर बम-बंदूकों के साथ होने वाले चुनावों से लोकतंत्र को क्या हासिल हो रहा है?