उज्जैन। शक्तिपीठ हरसिद्धि मंदिर के समीप उज्जयिनी के सम्राट राजा विक्रमादित्य का मंदिर है। 500 साल पुराने इस मंदिर से अनेक कथाएं जुड़ी हैं। दूरदराज से भक्त राजा विक्रमादित्य के दर्शन के लिए आते हैं। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा गुड़ी पड़वा पर मंदिर में राजा को छप्पन पकवानों का भोग लगाया जाता है। बकौल पुजारी उज्जयिनी में देवी देवताओं को छप्पन भोग लगाने की प्रथा राजा विक्रमादित्य ने ही शुरू की थी। यहां दर्शन करने से ग्रहों के दोषों की पीड़ा खत्म होती है। मंदिर के पुजारी पं.अखिलेश जोशी सम्राट विक्रमादित्य के मंदिर में सेवा पूजा करने वाले पांचवीं पीढ़ी के सदस्य हैं। वे बताते हैं उनके परिवार के पास भोज पत्र पर बना एक यंत्र है। इसमें विश्व का नक्शा दिखाई देता है, मध्य में एक भ्रूण की आकृति नजर आती है। इस स्थान को उनके पर दादा पृथ्वी का नाभि केंद्र बताते थे। वह स्थान मंदिर में स्थित विक्रमादित्य की मूर्ति के पैर के नीचे है। कालांतर में राजा जयसिंह ने मोक्षदायिनी शिप्रा के गऊघाट के समीप यंत्र महल का निर्माण कराया। जहां से 100-100 साल के पंचाग की गणना होने लगी। काल गणना में इतना फासला कोई मायने नहीं रखता है। मान्यता है भगवान विक्रमादित्य के दर्शन करने से नवग्रह के दोषों की पीड़ा का शमन होता है। जिन जातकों को शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव है, अगर वे वीर विक्रमादित्य के दर्शन करे तो शनिदेव की प्रसन्नता प्राप्त होती है। इस मंदिर से एक कथा ओर भी जुड़ी है, पुजारी बताते हैं राजा विक्रमादित्य जिसे दर्शन के लिए बुलाते हैं, वे स्वयं ही यहां चले आते हैं। देश में जिन लोगों को इस मंदिर की जानकारी नहीं है, वे भी संयोगवश यहां खिंचे चले आते हैं। मंदिर में प्रतिदिन राजा विक्रामादित्य की आरती पूजा होती है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर विशेष उत्सव मनाया जाता है।