रायपुर
वर्तमान परिवेरू में संस्कारों के अभावों के कारण परिवारों से संवेदनशीलता खत्म होते जा रही है इसलिए आज अधिकांश परिवार परेशानियों में है। हर व्यक्ति किसी न किसी कारण से परेशान है और उसकी परेशानी का कारण ही संवेदनशीलता का समाप्त होना है। संवेदनशीलता नहीं होने के कारण परिवार, मित्र, पुत्र सब एक-दूसरे से विमुख होते जा रहे है। परिवारों में आज गृहस्थी टूटने के जो परिणाम सामने आ रहे है या दिखाई दे रहे है उसका मूल कारण संवेदनशीलता का अभाव है। लव फॉर ह्मयुमैनिटी नींव संस्था द्वारा मैक कॉलेज आॅडिटोरियम समता कॉलोनी में श्रीमद् भागवत कथा में संवेदनशीलता सूत्र की व्याख्या करते हुए कथावाचक पंडित विजय शंकर मेहता ने ये बातें कहीं।
उन्होंने कहा कि मनुष्य का जीवन मिलना ही परमात्मा की असीम कृपा है, लेकिन वह संसार में आकर उसे भूल गया है। वह जब संसार में आया तो केवल आत्मा और परमात्मा ही उसके साथ थे और जब वह जाएगा तो भी आत्मा और परमात्मा ही उसके साथ रहने वाले है, लेकिन वह इन दोनों को भूल गया है। आत्मा का अगला कदम ही परमात्मा होता है, आत्मा तक पहुंचने के लिए उसे ध्यान करना होगा और उसी ध्यान मार्ग से वह परमात्मा तक पहुंचेगा। कर्म काण्ड से परमात्मा मिलने वाले नहीं है। अमृत कथा की व्याख्या करते हुए पंडित जी ने कहा कि बिना संघर्ष के कुछ प्राप्त नहीं होता और जो बिना संघर्ष के प्राप्त होता है वह कभी टिकता नहीं है। संघर्ष के समय शत्रुओं से भी हाथ मिला लेना चाहिए तभी बड़ा काम आसानी से पार पड़ सकता है। जीवन में संघर्ष का नाम ही विष है, जिसने संघर्ष के इस विष का सेवन सही ढंग से कर लिया तो उसके बाद जो आनंद और सुख जीवन में आएगा उसकी अनुभूति और वह स्थायी रुप से बने रहता है।
पंडित विजय शंकर मेहता ने कहा कि संपत्ति चाहे कितनी भी अर्जित कर लो लेकिन उसका कुछ हिस्सा अच्छे कार्यों में किसी की मदद के लिए खर्च करना चाहिए। इसका दुरुपयोग होने से इसकी कीमत चुकानी ही पड़ती है फिर चाहे वह परिवार का कोई सदस्य ही क्यों न चुकाए। उन्होंने कहा कि आज वैष्णव परिवारों के यहां होने वाले विवाह समारोह में मदिरा का जो चलन शुरू हुआ है वह कदापि अच्छा नहीं है, इसके परिणाम भुगतने ही पड़ते है। मांगलिक कार्यक्रमों में मदिरा का प्रयोग नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज व्यक्ति दोहरा चरित्र लेकर चल रहा है, एक ओर वह भगवान की पूजा-अर्चना कर रहा है तो दूसरी ओर घर में बुरी आदतों को प्रश्रय दे रहा है। विवाह समारोह याने साक्षात स्वामी लक्ष्मीनारायण है। वर नारायण का स्वरुप होता है और वधु लक्ष्मी, ऐसे समय में मदिरा का उपयोग नहीं करना चाहिए। वास्तव में मनुष्य को दोहरे चरित्र वाला जीवन यापन नहीं करना चाहिए। पुण्य को यदि बचाया नहीं गया तो पुण्य चले जाता है और यदि पुण्य चले गया तो फिर उस परिवार में कुछ नहीं बचता।
पंडित मेहता ने बताया कि कृष्ण और राम दोनों अवतार मानव जीवन के लिए हुए है और समाज तथा परिवार में हमें कैसा जीवन यापन करना चाहिए इसकी सीख भी हमें मिलती है। भगवान राम का जन्म प्रकाश में तथा कृष्ण का जन्म अंधकार में हुआ। भगवान कृष्ण जंगल से महल की ओर आए, राम महल से जंगल की ओर गए। राम का नाम सरल है, कृष्ण का नाम थोड़ा कठिन लेकिन ये दोनों ही चरित्र इस बात की शिक्षा देते है कि जीवन में चाहे संघर्ष से ऊंचाई पर पहुंचे या पहले से ऊंचाई पर हो, दोनों ही स्थितियों में कभी भी गुरुर या घमंड नहीं करना चाहिए।