बीजिंग
चीन और अमेरिका के बीच जारी तनाव ने दुनिया की नींद उड़ाकर रख दी है। चीन ने अमेरिका को चेतावनी देने के लिए इस हफ्ते दो खनिजों पर निर्यात प्रतिबंध का ऐलान कर दिया है। ये दोनों ऐसे खनिज हैं, जिनका इस्तेमाल दुनिया को चलाने के लिए किया जाता है। विशेषज्ञों का दावा है कि चीन पश्चिमी सप्लाई चेन को तहस-नहस करने के लिए अपने प्रभुत्व का इस्तेमाल कर रहा है। इन दोनों खनिजों का इस्तेमाल सेमीकंडक्टर्स, सौर पैनलों और मिसाइल सिस्टम में किया जाता है। इन दोनों खनिजों के नाम हैं लिथियम और कोबाल्ट। चीन इससे पहले गैलियम और जर्मेनियम पर भी निर्यात प्रतिबंध का ऐलान कर चुका है।
दुनिया का लगभग दो तिहाई लिथियम और कोबॉल्ट चीन में प्रोसेस होता है। यह इलेक्ट्रिक कारों के निर्माण के लिए सबसे जरूरी खनिज है। इसके अलावा चीन दुनिया के लगभग 60 फीसदी एल्यूमीनियम भी सोर्स है, जिसका इस्तेमाल ईवी बैटरी में भी किया जाता है। इसके अलावा चीन में 80 फीसदी पॉलीसिलिकॉन भी पाया जाता है, जो सौर पैनल में इस्तेमाल किए जाने वाला महत्वपूर्ण घटक है। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार, रेयर अर्थ मिनिरल्स पर चीन की पकड़ और पहुंच किसी भी दूसरे देश से ज्यादा मजबूत है। इन सभी का इस्तेमाल टच स्क्रीन स्मार्टफोन और मिसाइल डिफेंस सिस्टम जैसे महत्वपूर्ण तकनीकों में किया जाता है।
चीनी कंपनियां अक्सर उन खनिजों के प्रासेसिंग को भी नियंत्रित करती हैं, जिनका उत्पादन उनके देश में नहीं किया जाता है। उदाहरण के लिए दुनिया की निकल आपूर्ति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा सीधे चीन से आता है, लेकिन बाकी का अधिकांश हिस्सा भी चीनी कंट्रोल में ही है। इन्हें भले ही इंडोनेशिया और पापुआ न्यू गिनी जैसे देशों की खान से निकाला जाता है, लेकिन इन्हें प्रॉसेस चीनी कंपनियों के जरिए किया जाता है।
शुक्रवार को अमेरिकी वित्त मंत्री जेनेट येलेन ने चीन में अमेरिकी व्यवसायों को बताया कि बाइडन प्रशासन अभी भी गैलियम और जर्मेनियम के निर्यात को प्रतिबंधित करने के चीन के फैसले की समीक्षा कर रहा है। दुनिया के खनिजों पर चीन की पकड़ उसे पश्चिमी देशों की ऊर्जा, चिप निर्माण और रक्षा उद्योगों को संभावित रूप से बाधित करने की शक्ति देता है। चीन इसका इस्तेमाल अमेरिका के खिलाफ जारी प्रतिद्वंदिता में अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए कर रहा है। लिथियम या कोबाल्ट के निर्यात को प्रतिबंधित करने का चीन का फैसला दुनियाभर में गाड़ियों को निर्माण करने वाली कंपनियों को कड़ी टक्कर देगा। ऐसा माना जा रहा है कि इससे चीन को छोड़कर बाकी दुनिया में इलेक्ट्रिक कारों के लिए बैट्री का उत्पादन अस्त-व्यस्त हो जाएगा।