मुंबई
बांबे हाई कोर्ट ने कहा कि, सूचना तकनीक (आईटी) नियमों के संशोधन के नागरिकों के मूलभूत अधिकारों पर प्रभाव पर विचार करने से पहले सर्वप्रथम 'फर्जी, 'झूठे' और भ्रामक' शब्दों का दायरा और सीमाओं को जानने की जरूरत है। कोर्ट ने पूछा कि क्या सरकार की किसी नीति पर राय और संपादकीय सामग्री को भी भ्रामक कहा जा सकता है? क्या यह विधिसम्मत है कि किसी विवेकाधीन प्रशासन को अपार और असीमित अधिकार दिए जाएं? खंडपीठ इस मामले पर सुनवाई 13 जुलाई को भी जारी रखेगी।
इससे पहले केंद्र सरकार ने कोर्ट को आश्वासन दिया है कि वह 10 जुलाई तक एफसीयू को अधिसूचित नहीं करेगी। खंडपीठ ने शुक्रवार को कहा कि 14 जुलाई तक सरकार इस बयान पर कायम रहे। जस्टिस गौतम पटेल और नीला गोखले की खंडपीठ ने शुक्रवार को आईटी नियमों को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं की सुनवाई की। इन आईटी नियमों से केंद्र सरकार को इंटरनेट मीडिया पर सरकार और उनके कामकाज के खिलाफ फर्जी, झूठी और भ्रामक पोस्ट की पहचान करने का अधिकार मिलता है। इन नए आईटी नियमों के खिलाफ स्टैंडअप कमेडियन कुणाल कामरा, एडिटर्स गिल्ड आफ इंडिया और एसोसिएशन आफ इंडियन मैग्जींस की हाई कोर्ट में दायर याचिकाओं में कहा गया है कि आईटी के यह नियम मनमाने और असंवैधानिक हैं।
इन याचिकाओं में कहा गया है कि नागरिकों के मूलभूत अधिकारों पर इसका भयभीत करने वाला प्रभाव पड़ेगा। खंडपीठ ने कहा कि पहले हमें यह जानने की जरूरत है कि अगर 'फर्जी, झूठे और भ्रामक' शब्दों का दायरा और सीमाएं तय हैं तो हमें इसके प्रभाव में पड़ने की जरूरत नहीं है।
खंडपीठ ने यह भी जानना चाहा कि सरकारी कामकाज के दायरे में क्या आता है और क्या नहीं? कोर्ट ने कहा कि नियमानुसार कोई विषय-सामग्री या सूचना फर्जी, झूठी या भ्रामक पाई गई तो कार्रवाई की जाएगी। इसका निर्धारण भी इस मामले में फैक्ट चेकिंग यूनिट (एफसीयू) करेगी।
उसे यह तय करने के अधिकार मिले हैं कि कोई जानकारी झूठी है या नहीं। हमारी चिंता इस बात पर भी है कि आईटी नियमों के अनुसार एफसीयू के अधिकार क्षेत्र क्या हैं। कोर्ट ने कहा कि हमें इस बात से दिक्कत है कि कोई किस आधार पर कह सकता है कि यह बात पूरी तरह से गलत है।
उदाहरण के तौर पर देश की अर्थव्यवस्था को लेकर सरकारी आंकड़ों की आलोचना को ले लें। आंकड़े सरकारी सूत्रों से आते हैं लेकिन उसका विश्लेषण अलग-अलग तरीके से हो सकता है तो क्या यह सब झूठी, फर्जी या भ्रामक सूचना हो जाएगी। इसीतरह कोई संपादकीय सीधी चोट करता हो तो क्या उसे फर्जी, झूठा और भ्रामक मान लिया जाए।