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120 साल से रेलकर्मियों को अलर्ट कर रहे इस भोंपू को एक बार बजाने का खर्च सात हजार

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 गोरखपुर
अगर कोई कहे कि एक भोंपू (सायरन) 16 परिवारों की रोजी रोटी चला रहा है और इसे एक बार बजाने का खर्च सात हजार रुपये है तो शायद आपको विश्वास नहीं होगा, लेकिन ऐसा है और वह भी अपने गोरखपुर में।  इस भोंपू की कहानी शुरू होती है साल 1903 से। तब सबके हाथों में तो दूर की बात है, घरों में भी घड़ी नहीं हुआ करती थी। उस दौर में रेलवे के यांत्रिक कारखाने में कर्मचारियों को समय से काम पर बुलाने के लिए एक सायरन लगाया गया। इसे लगाए 120 साल हो गए, इसके बजने और लोगों को अलर्ट करने का सिलसिला आज भी जारी है। इस दौर में भी जब प्राय: सबके हाथ में स्मार्ट फोन तो कइयों के स्मार्ट वाच तक है और घड़ी हर घर के लिए सामान्य सी बात है।

120 साल से कर्मचारियों के जीवन का हिस्सा
अपनी स्थापना से लेकर आज तक यह भोंपू रेलवे यांत्रिक कारखाना के कर्मचारियों के जीवन का अहम हिस्सा बना हुआ है। चाहे समय से काम कर पहुंचना हो या शाम को घर लौटना। यह पूरी मुस्तैदी से अपना काम कर रहा है। यह हफ्ते में पांच दिन यानी सोमवार से शुक्रवार आठ बार और एक दिन शनिवार को चार बार बजता था। सुबह 6: 45 बजे से शुरू होकर 7:10, 7: 14, 11: 45, 12: 30,12: 40,12: 44 और आखिर में 16: 45 के सायरन के साथ दिन का अंत करता है। ये सायरन कर्मचारियों को सुबह जगाने से लेकर समय से काम पर पहुंचने, दोपहर के भोजन से लेकर शाम की छुट्टी तक की दिनचर्या को तय करता है।

सायरन के लिए तैनात हैं 16 कर्मचारी
सायरन बजाने और इसके मेंटनेंस के लिए एक एसएससी समेत 16 स्टाफ की तैनाती की गई है। इसमें शिफ्ट के हिसाब से ड्यूटी लगती रहती है। ये कर्मचारी सायरन बजाने, मेंटनेंस, बिजली संबंधी काम व उस दफ्तर की देख-रेख की जिम्मेदारी संभालते हैं। इनकी सैलरी पर रेलवे प्रति माह करीब 13 लाख रुपये खर्च करता है। यहां एसएससी के रूप में तैनात इंतजामी यादव बताते हैं कि आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ कि सायरन अपने तय समय पर न बजा हो।

चार किमी तक सुनाई देती है आवाज
सायरन की आवाज कितनी बुलंद है, इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि वर्कशॉप से करीब चार किलोमीटर दूर रामगढ़ झील रेलवे कॉलोनी तक इसकी आवाज साफ सुनाई देती है। इसकी आवाज सुनकर बिछिया, बौलिया, जटेपुर और कृष्णानगर रेलवे कॉलोनी में रहने वाले वर्कशॉप के कर्मचारी ड्यूटी पर निकल जाते हैं।

कई घरों में सायरन से ही मिलाई जाती है घड़ी
जानकर यह हैरानी जरूर होगी कि वर्कशॉप में काम करने वाले 60 फीसदी कर्मचारी घड़ी से समय न देखकर सायरन की आवाज से ही समय का आकलन कर लेते हैं और उसी के हिसाब से अपनी दिनचर्या चलाते हैं। आज भी कई घरों में घड़ी अगर बंद हो जाए तो उसका समय सायरन बजने पर ठीक किया जाता है।

अनुशासन सिखाया : केएल गुप्ता
एनई रेलवे मजदूर संघ के महामंत्री 106 वर्षीय कॉमरेड केएल गुप्ता का कहना है कि वे जब से सेवा में हैं तभी से वर्कशॉप के भोंपू की आवाज सुन रहे हैं। वह भी भोंपू की आजाव से ही काम पर जाते थे। भोंपू ने हम रेलकर्मियों को समय पर कार्यालय पहुंचने के साथ ही अनुशासन में भी रहना सिखाया है।