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बिहार के इस अस्पताल में बच्चे को दूध पिलाने के लिए दौड़ लगाती है मां, ऐसी क्या है मजबूरी?

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बिहार

प्रसव के बाद मां और उनके नवजात का इलाज एक साथ हो सके, इसके लिए बिहार के सरकारी अस्पतालों में एमसीएच (मदर एंड चाइल्ड हेल्थ) विंग बनायी गई थी। लेकिन यह अपने उद्देश्य में न केवल विफल हो चुका है बल्कि बीमार मां से उनके नवजात बच्चों को अलग भी कर रहा है। ऐसा होने से मां को अपने नवजात को दूध पिलाने के लिए दौड़ लगानी पड़ रही है। जबकि बच्चे की देख-रेख में मां और उनके परिजनों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

सदर अस्पताल में 30 बेड का एमसीएच विंग है। यहां सामान्य एवं सिजेरियन मिलाकर रोज औसतन आधा दर्जन महिलाओं का प्रसव हो रहा है। एमसीएच में 30 बेड पर मां अपने नवजात संग रह सकती हैं। लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है। नवजात की तबियत बिगड़ने पर उसे 200 मीटर दूर एसएनसीयू में भर्ती करना पड़ता है। इस बाबत सदर अस्पताल के हॉस्पिटल मैनेजर आशुतोष कुमार कहते हैं कि बीमार होने पर नवजातों को एसएनसीयू में भर्ती किया जाता है। इसके बावजूद तबियत में सुधार नहीं होता है तो बच्चे को मायागंज अस्पताल रेफर करके वहां स्थित पीकू वार्ड में भर्ती कराकर इलाज कराया जाता है।

मायागंज अस्पताल में 100 बेड का एमसीएच वार्ड है। करीब डेढ़ साल से यहां के 50 बेड वाले वार्ड को स्त्री एवं प्रसव रोग विभाग से कनेक्ट कर दिया गया है। ऐसे में यहां प्रसव कराने वाली महिलाओं और उनके नवजातों को रखा जाता है। जबकि इसी एमसीएच बिल्डिंग के दूसरे तल में 50 बेड का शिशु वार्ड आज तक शुरू ही नहीं हुआ। यहां कैंसर के मरीजों के लिए पेलिएटिव डे केयर एंड कीमोथेरेपी सेंटर का संचालन हो रहा है। मां को अपने नवजात को दूध पिलाने के लिए कंगारू यूनिट, टीकाकरण केंद्र आदि की सुविधा है। ऐसे में अगर नवजात की तबियत बिगड़ती है तो उसे पीजी शिशु रोग विभाग के सामान्य वार्ड, एसएनसीयू या फिर पीकू वार्ड में भर्ती कर इलाज किया जाता है। कहने को तो एमसीएच से शिशु रोग विभाग की अंदरूनी दूरी महज 50 मीटर है, लेकिन इसका इस्तेमाल सामान्य मरीजों के लिए न किये जाने से मां को अपने बीमार बच्चे को दूध पिलाने के लिए स्त्री एवं प्रसव रोग विभाग से होकर जाने पर 150 मीटर तो बाहर से जाने पर 400 मीटर की दूरी तय करनी पड़ती है।

क्या कहते हैं अधिकारी?
इस संबंध में मायागंज अस्पताल के अधीक्षक डॉ. उदय नारायण सिंह ने कहा कि अगस्त के बाद अस्पताल परिसर में बने फैब्रिकेटेड हॉस्पिटल के शुरू होने पर पेलिएटिव डे केयर एंड कीमोथेरेपी सेंटर को इसमें शिफ्ट कर दिया जाएगा। इसके बाद एमसीएच बिल्डिंग के पहले तल पर 50 बेड का शिशु वार्ड शुरू कर एक ही छत के नीचे जच्चा-बच्चा का इलाज आदि की सुविधा शुरू करा दी जाएगी।

सदर अस्पताल के अस्पताल प्रभारी डॉ. राजू कुमार का कहना है कि 30 बेड का एमसीएच विंग सामान्य या सिजेरियन वाली महिलाओं की संख्या के लिहाज से अपर्याप्त है। कम से कम एमसीएच बिल्डिंग में 50 बेड का जच्चा वार्ड और 50 बेड का बच्चा वार्ड होता तो एक ही छत के नीचे इलाज करना संभव हो पाता। बावजूद हम सीमित संसाधनों के बूते बेहतर सुविधा देने का प्रयास कर रहे हैं।