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जानिए कब है गुड़ी पड़वा और क्या है परंपरा

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चैत्र मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवसंवत्सर का प्रारंभ माना जाता है। इस साल गुड़ी पड़वा 6 अप्रैल को आ रही है। इसे गुड़ी पड़वा के नाम से मनाया जाता है। हिंदू धर्म में इस पर्व का खास महत्व है। गुड़ी ध्वज अर्थात झंडे को कहा जाता है और प्रतिपदा तिथि को पड़वा। मान्यता है कि इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था। वसंत और ग्रीष्म ऋतु को जोड़ता चैत्र माह वैसे भी कोंपलों को फूटने का समय है। ऐसे में सृष्टि का प्रारंभ वसंत से ही हो सकता है। कहते है कि गुड़ी पड़वा के दिन ही यानी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना का कार्य शुरू किया था। यही कारण है कि इसे सृष्टि का प्रथम दिन भी कहते हैं। इस दिन नवरात्र घटस्थापन, ध्वजारोहण, संवत्सर का पूजन इत्यादि किया जाता है। इसे हिंदू कैलेंडर का पहला दिन भी कहते है। गुड़ी पड़वा के दिन लोग अपने घरों की सफाई कर रंगोली और तोरण द्वार बनाकर सजाते हैं। घर के आगे एक गुड़ी मतलब झंडा रखा जाता है। इसके अलावा एक बर्तन पर स्वास्तिक बनाकर उस पर रेशम का कपड़ा लपेट कर उसे रखा जाता है। इस दिन सूर्यदेव की आराधना के साथ ही सुंदरकांड, रामरक्षा स्त्रोत और देवी भगवती के मंत्रों का जाप करने की भी परंपरा है। जानिए गुड़ी पड़वा की परंपरा- प्रात:काल स्नान आदि के बाद गुड़ी को सजाया जाता है। इस दिन अरुणोदय काल के समय अभ्यंग स्नान अवश्य करना चाहिए। सूर्योदय के तुरंत बाद गुड़ी की पूजा का विधान है। चटख रंगों से रंगोली बनाने के साथ ही फूलों से घर को सजाया जाता है। इस दिन नए वर्ष का भविष्यफल सुनने-सुनाने की भी परंपरा है। गुड़ी पड़वा पर श्रीखंड, पूरन पोली, खीर आदि बनाए जाते हैं। शाम के समय लोग लेजिम नामक पारंपरिक नृत्य भी करते हैं। किसान रबी फसल की कटाई के बाद पुन: बुवाई करने की खुशी में इस त्यौहार को मनाते हैं। हिन्दुओं में पूरे वर्ष के दौरान साढ़े तीन मुहूर्त काफी शुभ माने जाते हैं, इनमें गुड़ी पड़वा भी एक है। इसके अलावा अक्षय तृतीया और दशहरा को पूर्ण और दीवाली को अर्ध मुहूर्त माना जाता है।