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MLA तोड़े, NCP दांव पर, अब बारामती पर भी नजर; चाचा का गढ़ छीनेंगे अजित पवार

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महाराष्ट्र

महाराष्ट्र का पॉलिटिकल ड्रामा किस मोड़ पर रुकेगा, यह अब तक तय नहीं है। उपमुख्यमंत्री अजित बनाम दिग्गज शरद पवार की जंग में किसे कितना समर्थन है, अब तक यह भी स्पष्ट नहीं है, लेकिन एक तस्वीर साफ-साफ उभर कर आ रही है कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी टूट चुकी है। भतीजे ने खुद को चाचा की बनाई पार्टी का अध्यक्ष भी घोषित कर दिया है। अब संभावनाएं जताई जा रही हैं कि सीनियर पवार के हाथों से गढ़ पश्चिम महाराष्ट्र छिन सकता है।

भाजपा की हसरत पूरी कर सकते हैं अजित
कहा जा रहा कि एनसीपी में हुई बगावत का सबसे ज्यादा असर पश्चिम महाराष्ट्र पर पड़ेगा। इसी क्षेत्र की मदद से पवार की पार्टी राज्य में ताकतवर बनी थी। खासतौर से जोखिम में बेटी सुप्रिया सुले का क्षेत्र बारामती भी है। इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी को जीत का लगभग 5 दशकों से इंतजार है। खास बात है कि बुधवार को हुई अजित पवार की बैठक में पश्चिम महाराष्ट्र से एनसीपी के 22 में 17 विधायक पहुंचे थे। जबकि, सीनियर पवार की मीटिंग में क्षेत्र के 5 विधायक थे। पश्चिम महाराष्ट्र से एनसीपी के चार सांसद हैं। इनमें सुप्रिया सुले (बारामती), श्रीनिवास पाटिल (सतारा), अमोल कोल्हे (शिरूर) और सुनील तटकरे (रायगढ़) का नाम शामिल है। खास बात है कि रविवार को एनडीए सरकार का हिस्सा बनने वालों में तटकरे का नाम भी शामिल था।

क्या कहते हैं आंकड़े
साल 2019 विधानसभा चुनाव में पश्चिम महाराष्ट्र की 58 सीटों में से एनसीपी को 22 सीटें मिली थीं, जिसकी मदद से पार्टी 54 के आंकड़े पर पहुंच गई थी। हालांकि, 2020 में पंढारपुर-मंगलवेधा उपचुनाव में भाजपा के हाथों हार के बाद एनसीपी 53 पर आ गई थी। अन्य 36 सीटों में से भाजपा के पास 18, कांग्रेस के पास 8, शिवसेना 4 और अन्य के पास 6 सीटें थीं।

बारामती में कितना मजबूत पवार परिवार
साल 1967 में सीनियर पवार यहां से पहली बार चुने गए और 2009 तक विधानसभा या लोकसभा के जरिए सिलसिला जारी रहा। पवार के राज्यसभा जाने के बाद 2009 में सुप्रिया ने जीत हासिल की। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि हालात अब तक पवार के पक्ष में रहे, लेकिन बदले राजनीतिक समीकरण चुनावी स्थिति भी बदल सकते हैं।

जब अजित की मदद से सुप्रिया ने दर्ज की जीत
कहा जाता है कि 2014 और 2019 में सुप्रिया की जीत में अजित की बड़ी भूमिका रही थी। हालांकि, अब जब अजित अलग राह पर हैं और भाजपा भी क्षेत्र में मजबूत होती जा रही है। ऐसे में बारामती का चुनाव दिलचस्प हो सकता है। साथ ही बारामती के मतदाताओं का कनेक्शन अजित से काफी गहरा माना जाता है।