नई दिल्ली
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में फूट हो चुकी है, जिसके मुख्य किरदार महाराष्ट्र के नए उपमुख्यमंत्री अजित पवार हैं। कहा जा रहा है कि यह घटनाक्रम दिग्गज नेता शरद पवार के लिए दोहरी मार की तरह है। एक ओर जहां उन्हें भतीजे अजित के ही हाथों बगावत का सामना करना पड़ा। वहीं, सबसे करीबी माने जाने वाले प्रफुल्ल पटेल भी उनके खिलाफ आगे बढ़ते नजर आए।
संकटमोचक ने ही दे दी चिंता
राज्यसभा सांसद पटेल को पवार और एनसीपी का संकटमोचक माना जाता है। कहा जाता है कि पटेल ने कभी भी बगैर पवार की अनुमति के कोई सियासी फैसला नहीं लिया। ऐसे में यह बगावत सीनियर पवार पर निजी हमला भी हो सकती है। खुद पवार भी कह चुके हैं, 'मैं प्रफुल्ल पटेल और तटकरे के अलावा किसी से भी दुखी नहीं हूं।'
कितना बड़ा है पटेल का कद
कहा जाता है कि शरद पवार ही पटेल को राजनीति में लेकर आए थे। उस दौरान उन्होंने गोंदिया नगर परिषद के अध्यक्ष से लेकर केंद्रीय मंत्री तक का सफर तय किया। साल 1991 में उन्होंने पहली बार लोकसभा चुनाव जीता। खास बात है कि उनकी हार के बाद भी पवार का ध्यान उन्हें राज्यसभा में भेजना रहता था।
पवार के संकटमोचक
पटेल को एनसीपी में बड़ा संकटमोचक माना जाता है। 1999 में पार्टी के गठन के साथ ही वह लोकसभा और विधानसभा में सीटों के आवंटन और कैबिनेट गठन में बड़ी भूमिका निभाई है। साथ ही गांधी परिवार और दिवंगत नेता अहमद पटेल के साथ अच्छे संबंधों के कारण महाविकास अघाड़ी को बनाने में भी उन्हें बड़ा खिलाड़ी माना जाता है। ताजा उदाहरण पवार के इस्तीफे के फैसले का है, जब पटेल ने ही पार्टी में इस विवाद को शांत कराया। कहा जाता है कि पटेल के मनाने के बाद ही पवार ने इस्तीफा वापस लिया था।
पवार ने बनाया था कार्यकारी अध्यक्ष
10 जून को ही पवार ने बड़ा ऐलान किया था और बेटी सुप्रिया सुले के साथ पटेल को एनसीपी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था। इस घोषणा को भतीजे अजित के लिए बड़ा झटका माना जा रहा था, क्योंकि उस दौरान विपक्ष के नेता रहे अजित को पार्टी में कोई भूमिका नहीं दी थी। जानकारों का मानना है कि यहीं से 2 जुलाई को हुई बड़ी बगावत का बीज पड़ा था।