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एक घंटे में बदला महाराष्ट्र पूरा सियासी सीन, नेता विपक्ष से डिप्टी CM बन गए अजित पवार

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मुंबई
महाराष्ट्र की राजनीति में रविवार को बड़ा सियासी हाहाकार देखने को मिला. अजित पवार एक घंटे के भीतर नेता विपक्ष से डिप्टी सीएम बन गए. रविवार का सियासी घटनाक्रम इतनी तेजी से बदलता गया कि किसी को किसी को इसकी पहले भनक तक नहीं लगी. बैठक करने के बाद पवार समर्थक विधायकों के साथ राजभवन पहुंचे और फिर डिप्टी सीएम की शपथ ली.

उनके अलावा नौ एनसीपी विधायकों ने भी मंत्री पद की शपथ ली जिनमें धर्मराव अत्रम, सुनील वलसाडे, अदिति तटकरे, हसन मुश्रीफ, छगन भुजबल, धन्नी मुंडे, अनिल पाटिल, दिलीप वलसे पाटिल शामिल हैं. इस दौरान महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस के साथ सभी मंत्री भी राजभवन मौजूद रहे. इनके अलावा एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल भी राजभवन में मौजूद हैं जिन्हें शरद पवार का करीबी कहा जाता है.

एक घंटे में बदला पूरा सियासी सीन

महाराष्ट्र की सियासत में सब कुछ रविवार को इतना तेजी से हुआ कि इसकी भनक लोगों को तब लगी जब अजित पवार अपने समर्थक विधायकों के साथ राजभवन के लिए रवाना हुए. सबसे पहले अजित पवार ने समर्थक विधायकों के साथ अपने आवास पर बैठक की. इसके बाद वह 17 विधायकों के साथ शिंदे सरकार को समर्थन देने के लिए राजभवन रवाना हो हुए.  पवार के पहुंचने के बाद राजभवन में सीएम एकनाथ शिंदे और डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस भी पहुंचे जिनके साथ तमाम मंत्री भी मौजूद थे.

अब भतीजे की बगावत के बाद अब शरद पवार की एनसीपी टूट के कगार पर पहुंच गई. देखना होगा कि शरद पवार आगे किस तरह का कदम उठाते हैं. बताया जाता है कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की राज्य इकाई के प्रमुख के रूप में काम करने का अवसर नहीं दिए जाने के बाद अजित असंतुष्ट थे. बैठक में पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल और सुप्रिया सुले भी शामिल हुईं. हालांकि, सुले बैठक छोड़कर चली गईं. रविवार सुबह एनसीपी के प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल ने पुणे में मौजूद शरद पवार से फोन पर बातचीत की. राजनीतिक घटनाक्रम पर नजर रखते हुए, शरद पवार ने पुणे में रहने का फैसला किया है और कथित तौर पर अपने सभी निर्धारित कार्यक्रम रद्द कर दिए हैं.

विपक्षी एकता को झटका

सूत्रों के मुताबिक, भाजपा-शिवसेना को समर्थन देने और सरकार में शामिल होने का एनसीपी का फैसला 2024 से पहले विपक्षी एकता के लिए एक बड़ा झटका है. यह फैसला शरद पवार की मंजूरी के बिना नहीं लिया जा सकता था और यह कांग्रेस द्वारा राहुल गांधी को थोपने की कोशिश का नतीजा है.